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सूत्र १५ । ]
सभाप्यतत्त्वार्थाधिगमसूत्रम् ।
सप्तयोजनशतान्यवगाह्य
मुखानां हस्तिमुखानां सिंहमुखानां व्याघ्रमुखानामिति ॥ तादायामविष्कम्भा एवान्तरद्वीपाः । तद्यथा - अश्वकर्णसिंहकर्णहस्तिकर्ण कर्णप्रावरणनामानः ॥ अष्टौ योजनशतान्यवगाह्याष्टयोजनशतायामविष्कम्भा एवान्तरद्वीपाः । तद्यथाउल्कामुखविद्युज्जिह्वमेषमुखविद्यूद्दन्तनामानः ॥ नवयोजनशतायाभविष्कम्भा एवान्तरद्वीपा भवन्ति । तद्यथा - घनदन्त गूढदन्तविशिष्टदन्तशुद्धदन्तनामानः ॥ एकोरुकाणामेको रुकद्वीपः । एवं शेषाणामपि स्वनामभिस्तुल्यनामानो वेदितव्याः॥शिखरिणोऽप्येवमेवेत्येवं षट्पञ्चाशदिति ॥
अर्थ- - ऊपर आर्य पुरुषोंका आचरण और शील बताया जा चुका है। उससे विपरीत आचरण और शील म्लेच्छों का हुआ करता है । आर्य पुरुषोंके जो क्षेत्र जाति कुल कर्म शिल्प और भाषा ये छह विषय बताये हैं, उनसे अतिरिक्त क्षेत्र जाति आदिको जो धारण करने वाले हैं, उनको म्लेच्छ समझना चाहिये । इनके अनेक भेद हैं, जैसे कि शक यवन किरात काम्बोज बाल्ही इत्यादि । इनके सिवाय अन्तरद्वीपों में जो रहते हैं, वे म्लेच्छ ही हैं । क्योंकि उनके क्षेत्रादिक उपर्युक्त क्षेत्रादिकोंसे विपरीत ही हैं । अन्तरद्वीप सम्बन्धी म्लेच्छों का आवास स्थान और आकार आदि इस प्रकारका समझना चाहिये ।—
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तीन सौ
हिमवान् पर्वतकी पूर्व और पश्चिमकी तरफ चारों विदिशाओं में योजन लवणसमुद्र के भीतर चलकर चार प्रकारकी मनुष्य जातियाँ जिनमें निवास करती हैं, ऐसे चार अन्तरद्वीप हैं । प्रत्येक अन्तरद्वीपकी चौड़ाई तथा लम्बाई तीन तीन सौ योजन की है । इन चार अन्तरद्वीपों के क्रमसे ये चार नाम हैं- एकोरुक आभासिक लाङ्गुलिक और वैषाणिक । एकोरुक द्वीपमें रहनेवाले मनुष्यों का नाम भी एकोरुक है । इसी प्रकार आभासिक आदि अन्तरद्वीपों के विषय में तथा दूसरे भी अन्तरद्वीपों के विषयमें समझना चाहिये, कि द्वीप के नामके अनुसार ही वहाँके रहनेवाले मनुष्यों के भी वैसे ही आभासिक लाङ्गलिक आदि नाम हैं, न कि वहाँके मनुष्योंका आकार ही वैसा हैं । वहाँपर उत्पन्न होनेवाले मनुष्य सम्पूर्ण अङ्ग और उपाङ्गोंसे पूर्ण तथा सुन्दर देखनेमें अति मनोहर होते हैं । सभी अन्तरद्वीपोंके विषय में यही बात समझनी चाहिये । इन द्वीपों में उत्पन्न होनेवाले मनुष्य युगल उत्पन्न होते हैं, और इनकी आयु पल्यके असंख्यातवें भाग होती है, तथा शरीरकी उँचाई धनुषकी होती है।
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पूर्वोत्तर दिशामें तीन सौ योजन लवणसमुद्र के भी पलकर तीन सौ योजन लम्बा और 'तीन सौ ही योजन चौड़ा एकोरुक नामका द्वीप है, और उसमें एकोरुक नामके मनुष्य निवास करते हैं। दक्षिण पूर्व दिशानें तीन सौ योजन लवणसमुद्र के भीतर चलकर तीन सौ योजन लम्बा
१ - अश्वहस्ति सिंहव्याघ्रमुखनामानः । एवं वा क्वचित्पाठः । २- सप्तशतानीति च क्वचित्पाठः । ३ - सप्तयोजनशतेति वा पाठः । ४- नवयोजनशतान्यवगाह्य इति चाधिकः पाठः । ५-श्रेष्ठदन्त इति वा पाठः । ६- दिगम्बर सम्प्रदाय के अनुसार एकोरुक आदि नाम आकृतिकी अपेक्षासे हैं । एक ही टाँग जिनके हो, उनको एकोरक कहते हैं । इसी तरह हरएक अन्तरद्वीप के मनुष्यों का नाम आकारको अपेक्षा से अन्वर्थ समझना चाहिये ।
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