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रायचन्द्रजैनशास्त्रमालायाम्
[द्वितीयोऽध्यायः
अर्थ-स्थावर जीव तीन प्रकारके हैं-पृथिवीकायिक, जलकायिक और वनस्पतिकायिक । इनमेंसे पृथिवीकायिक जीव शुद्ध पृथिवी शर्करा बालुका मृत्तिका उपल आदिके भेदसे अनेक प्रकारके हैं । इसी प्रकार जलकायिक जीव भी हिम अवश्याय आदिके भेदसे अनेक प्रकारके हैं। तथा वनस्पतिकायिक भी शैवल मलक आर्द्रक पणक वृक्ष गुच्छ गुल्म लता आदिके भेदसे अनेक प्रकारके हैं।
भावार्थ-स्थावर और त्रस शब्दोंका अर्थ दो- प्रकारसे होता है-एक क्रियाकी अपेक्षासे और दूसरा कर्मके उदयकी अपेक्षासे । क्रियाकी अपेक्षासे जो स्थानशील हों-एक ही जगहपर रहें-चलते फिरते न हों, उनको स्थावर कहते हैं, और कर्मके उदयकी अपेक्षासे जिनके स्थावरनामकर्मका उदय हो, उनके स्थावर कहते हैं । यहाँपर ये स्थावरके तीन भेद क्रियाकी अपेक्षासे बताये हैं, न कि कर्मोदयकी अपेक्षासे । क्योंकि कर्मकी अपेक्षासे अग्निकाय और वायुकाय भी स्थावर ही हैं।
स्थावरोंके विषयमें यह शंका हो सकती है, कि क्या इनमें भी साकार और अनाकार उपयोग पाया जाता है ? सो युक्ति और आगम दोनों ही प्रकारसे इनमें दोनों प्रकारके उपयोगका अस्तित्व सिद्ध है, ऐसा समझना चाहिये । आहारादि क्रिया विशेषके देखनेसे उनकी आहार भय मैथुन परिग्रहरूप संज्ञाओंका बोध होता है, जिनसे कि उनके उपयोगकी अनु मानसे सत्ता सिद्ध होती है । आर्गममें भी इनके साकार और अनाकार ऐसे दोनों ही उपयोगोंका उल्लेख किया गया है।
१-दिगम्बर सम्प्रदायमें सूत्रपाठ ऐसा है कि-" पृथिव्यप्तेजोवायुवनस्पतयः स्थावराः” “ तथा द्वीन्द्रियादयस्त्रसाः”। अतएव स्थावर पाँच प्रकारके माने हैं-पृथिवीकाय जलकाय अग्निकाय वायुकाय और वनस्पतिकाय । तथा द्वीन्द्रिय त्रीन्द्रिय चतुरिन्द्रिय और पंचेन्द्रिय इनको ही त्रस माना है, उन्होंने कर्मके उदयसे ही स्थावर और बस भेद किये हैं, क्रियाकी अपेक्षासे नहीं। जैसा कि श्रीसिद्धसेनगणीने भी कर्मोदयकी अपेक्षा पृथिवीकायादि पाँचोंको स्थावर और द्विन्द्रियादिकको ही त्रस बताया है। २-जैसा कि पहले श्रीसिद्धसेनगणीके वाक्योंको उद्धृत करके बताया जा चुका है । ३–एकेन्द्रिया उपयोगवन्तः आहारादिषुविशिष्ट प्रवृत्त्यन्यथानुपपत्तेः ॥ ४-" पुढविकाइयाणं भंते ! किं सागारोवओगोवउत्ता अणागारोवओगोवउत्ता ? गोयमा ! सागारोव
ओगोउत्ता वि अणागारोवओगोवउत्ताधि । " (प्रज्ञा० सूत्र-३१२ ) अर्थात् हे भदन्त ! पृथिवीकायिक जीव साकारोपयोगयुक्त अथवा अनाकारोपयोगयुक्त हैं ? उत्तर-हे गौतम, साकारोपयोगयुक्त भी हैं; और अनाकारोपयोगयुक्त भी हैं। इसी प्रकार अन्य स्थावरोंके विषयमें भी समझ लेना चाहिये ।
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