________________
रायचन्द्रजैनशास्त्रमालायाम्
[प्रथमोऽध्यायः
आदिके तीन नय-नैगम संग्रह और व्यवहार सभी सम्यग्ज्ञान और मिथ्याज्ञानोंको विषय किया करते हैं । परन्तु सम्यग्दृष्टिके ज्ञानको ज्ञान-सम्यग्ज्ञान और मिथ्यादृष्टिके ज्ञानको उससे विपरीत-मिथ्याज्ञान कहते हैं ॥ २ ॥
___ऋजुसूत्र नय छह ज्ञानोंका ही आश्रय लिया करता है-मतिज्ञान और मत्यज्ञानका आश्रय नहीं लिया करता । क्योंकि मतिज्ञान श्रुतज्ञानका उपकार करता है, और इसी लिये मति
और श्रुतमें कथंचित् अभेद भी है । जब श्रुतज्ञानका आश्रय ले लिया, तब मतिज्ञानकी आवश्यकता भी क्या है ? शब्दनय श्रुतज्ञान और केवलज्ञानका ही आश्रय लिया करता है, औरोंका नहीं । क्योंकि अन्य ज्ञान श्रुतज्ञानमें ही बलाधान किया करते हैं, वे स्वयं अपने विषयका दूसरेको बोध नहीं करा सकते ॥ ३॥
शब्दनय मिथ्यादर्शन और अज्ञानका भी आश्रय नहीं लिया करता, क्योंकि इस नयकी अपेक्षासे कोई भी प्राणी अज्ञ नहीं है। क्योंकि सभी जीव ज्ञस्वभावके धारण करनेवाले हैं, इसीलिये इस नयकी दृष्टिसे कोई भी जीव मिथ्यादृष्टि भी नहीं है ॥४॥
इस तरह नयोंका विचार अनेक प्रकारका है, यद्यपि ये नय कहीं कहीं पर किसी किसी विषयमें प्रवृत्त होनेपर विरुद्ध सरीखे दीखा करते हैं, परन्तु अच्छी तरह पर्यालोचन करनेपर वे विशुद्ध-निर्दोष-अविरुद्ध ही प्रतीत हुआ करते हैं । वैशेषिक आदि अन्य-जैनेतर लौकिक मतोंके शास्त्रोंमें ये नय नहीं हैं। उन्होंने इन नयोंके द्वारा वस्तुस्वरूपका पर्यालोचन किया भी नहीं है । परन्तु इनके विना वस्तुस्वरूपका पूर्ण ज्ञान नहीं हो सकता, अतएव तत्त्वज्ञानको सिद्ध करनेके लिये इनका स्वरूप अवश्य ही जानना चाहिये ॥५॥
इति प्रथमोऽध्यायः॥
PNS
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org.