Book Title: Ratanchand Jain Mukhtar Vyaktitva aur Krutitva Part 1
Author(s): Jawaharlal Shastri, Chetanprakash Patni
Publisher: Shivsagar Digambar Jain Granthamala Rajasthan
View full book text
________________
[ १९ ]
विशेष यह है कि मैं तो काम से जल्दी ही छुट्टी पा गया परन्तु डॉ० सा० तो हर १५-२० दिनों में थोड़ीथोड़ी सामग्री सुसज्जित कर अद्यावधि प्र ेस में भेजते रहे हैं अर्थात् वे तो आज तक कार्य - निरत रहे हैं । इतना ही नहीं, विषय सूची, शंकाकार सूची, समाधानों में प्रयुक्त ग्रंथों की सूचि श्रादि भी डॉ० सा० ने ही विशेष परिश्रमपूर्वक तैयार की है। डॉ० सा० जोधपुर विश्वविद्यालय में हिन्दी के एसोशिएट प्रोफेसर हैं, साथ ही शोधनिर्देशक भी हैं। आपके पूज्य पिताश्री पण्डित महेन्द्रकुमारजी पाटनी शास्त्री - काव्यतीर्थं थे जो बाद में पूज्य १०८ श्रा० क० श्रुतसागरजी महाराज से श्रीमहावीरजी में दीक्षित होकर मुनि समता सागरजी हुए थे। डॉ० सा० भी ज्ञान व त्याग दोनों में विशिष्ट हैं ।
परिवर्धित स्वरूप में आपके
यदि डा० सा० का सहयोग न मिलता तो मैं ग्रंथ को इतने परिष्कृत व समक्ष नहीं रख पाता । इस अमृतमन्थन का हेतुभूत परिश्रम सर्वस्व आपका ही है । आप दीर्घायुष्क व स्वस्थ रहें ताकि जिनवाणी की अनवरत सेवा करते रह सकें । इस ग्रंथ के लिए डॉ० सा० जैसे कुशल एवं अनुभवी सम्पादक को अपने साथ पाकर मैं तो गौरवान्वित हुधा ही हूँ, ग्रंथ में भी चार चांद लगे हैं ।
ग्रंथ के परिवर्तित स्वरूप के कारण जिन विद्वानों से आग्रहपूर्वक लेख मंगवाने के बावजूद भी हम उन्हें ग्रंथ में प्रकाशित नहीं कर सके हैं, उनसे हम सम्पादक द्वय सविनय क्षमा याचना करते हैं ।
पूर्व में प्रकाशित प्रवणित त्यागियों एवं महानुभावों के अतिरिक्त भी जिन-जिन विद्वानों, त्यागियों एवं अन्य सज्जनों ने इस ग्रंथ के लिए प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष रूप में जो भी सहयोग दिया है उनके प्रति हम दोनों मैं एवं मेरे सहयोगी डॉ० पाटनीजी श्रद्धावनत होकर अत्यन्त कृतज्ञता ज्ञापित करते हैं ।
ग्रंथ प्रकाशन हेतु द्रव्य प्रदान करने वाले समस्त दातारों के प्रति हम हृदय से धन्यवाद श्रर्पित करते हैं ।
श्रीमान् पांचलालजी जैन ( मालिक, कमल प्रिंटर्स, मदनगंज - किशनगढ़ ) एवं सभी प्रेस कर्मचारियों के भी हम हृदय से प्रभारी हैं जिन्होंने इस कष्ट साध्य / श्रम साध्य काम को सुन्दर रीत्या सम्पन्न कर ग्रंथ को आकर्षक रूप प्रदान किया है ।
श्रलं विज्ञेषु ! भद्रं भूयात् । चिरञ्जीयात् जिनशासनम् ।
१-१-८९
साडिया बाजार, गिरिवर पोल
भीण्डर (उदयपुर)
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
विनीत :
जवाहरलाल मोतीलाल वकतावत
सम्पादक
www.jainelibrary.org