Book Title: Ratanchand Jain Mukhtar Vyaktitva aur Krutitva Part 1
Author(s): Jawaharlal Shastri, Chetanprakash Patni
Publisher: Shivsagar Digambar Jain Granthamala Rajasthan
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कार्य का प्रथम एवं मुख्य चरण था प्रकाशित-अप्रकाशित शंका-समाधानों को एकत्र करना। तदनुसार मैंने अजमेर तथा मथुरा में रखी जैन गजट व जैन सन्देश की फाइलों से सामग्री प्राप्त करने हेतु अजमेर के सर सेठ भागचन्दजी सोनी तथा पं० अभयकुमारजी शास्त्री से तथा काशी के पं० कैलाशचन्दजी शास्त्री एवं पं० खुशालचन्दजी गोरावाला से पत्र व्यवहार किया। सभी ने अत्यन्त सहृदयतापूर्वक स्वीकृति प्रदान की। इसी बीच दिनांक २६-१०-८२ को मेरे पूज्य पिता श्री मोतीलालजी बक्तावत असाध्य व्याधि कैसर के कारण असमय में ही काल-कवलित हुए अतः कार्य में विलम्ब स्वाभाविक था।
दिनांक २६-११-८२ को मैं अजमेर पहुंचा। गजट कार्यालय में सुरक्षित फाइलों से अभिप्रेत शंकासमाधान वाले पत्रों के फोटो स्टेट करवाए। ऐसे पत्र लगभग ६५० हो गए। अपने अजमेर प्रवास में मैं सरसेठ भागचन्दजी सोनी का प्रतिथि रहा। खाना-पीना भी सब उन्हीं के साथ होता था। मुझ अपरिचित के प्रति उनका वह अप्रतिम सत्कार व सौहार्द मैं कभी नहीं भूल सकता । वे सच्चे मायने में प्रशस्य श्रावक थे।
दिनांक २७-११-८२ को मैं मथुरा पहुँचा । वहां पं० जीवनलालजी शास्त्री ( वर्तमान में स्याद्वाद महाविद्यालय अटा मन्दिर ललितपुर के उप प्राचार्य ) ने मुझे पूरे तन मन से सहयोग दिया। मैं आपका हृदय से आभारी हूँ। परन्तु मथुरा में फोटो स्टेट की अच्छी और सस्ती सुविधा न होने के कारण मैं 'सन्देश' की अपेक्षित फाइलों को अजमेर ही ले आया । अजमेर में उन फाइलों से अभिप्रेत १५८ पत्रों के फोटो स्टेट कराकर मैं भीण्डर आ गया और वहां से वे फाइलें सुरक्षित रूप से पैक कर रजिस्टर्ड डाक से मथुरा भेज दीं। इस विश्वास के लिये मैं पूरे 'जैन संघ' के कार्यकर्ताओं के प्रति तथा विशेषतः पण्डितजी के प्रति सदैव आभारी हूँ।
प्रकाशित सामग्री उपलब्ध करने के बाद अप्रकाशित सामग्री एकत्र की गई। मेरे पास ऐसी प्रचुर सामग्री थो । सेठश्री बद्रीप्रसादजी सरावगी, पटना सिटी से भी उनके पास की सामग्री मँगवा ली गई । पूज्य गुरुवर्यश्री से विशेष शंका-समाधान करने वाले उनके शिष्य श्री शान्तिलालजी कणजी, दिल्ली के पास भी शंका समाधान की विपुल सामग्री थी परन्तु उनसे हुई बातचीत के अनुसार उनके पास वह सुरक्षित नहीं रही। इन व्यक्तिगत संग्रहों के साथ ही जैनपत्रों में भी ऐसी सामग्री को मंगवाने हेतु सूचना प्रसारित की गई। परन्तु कोई विशेष सामग्री न पा सकी । इस प्रकार एकत्र सारी सामग्री मैंने यथासमय पूज्य माताजी व डॉ० पाटनीजी के सम्मुख रखी। दोनों बहुत प्रसन्न हुए । माताजी ने कहा--'काम का मजा अब पाएगा। अब बनने वाला ग्रंथ सचमुच एक निधि होगा।'
संगृहीत सकल सामग्री का मैंने अपने स्तर पर वाचन किया । मैं मूल मैटर को सन्दर्भित ग्रन्थों से मिलामिला कर शुद्ध करता जाता था। मिलान के समय मेरे इर्द गिर्द इतने ग्रंथ एकत्र हो जाते थे मानो इनकी दुकान लगाई हो। शोध्य स्थल भी सैकड़ों थे। प्रेस की भी अनेक भूलें थी। इस कार्य में मुझे सर्वाधिक श्रम हुअा व बहुत समय लगा।
दिनांक १७-१-८४ को मैं जावद ( मन्दसौर ) गया और अपने साथ श्रद्धासुमन का भाग एवं फोटोस्टेट की सारी सामग्री लेता गया। इस समय प. पू. आचार्य धर्मसागरजी महाराज का संघ यहीं था और पूज्य प्रा. क.
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