Book Title: Prashastapad Bhashyam
Author(s): Shreedhar Bhatt
Publisher: Sampurnanand Sanskrit Vishva Vidyalay

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Page 14
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org भूमिका न्यायकन्दली सहित प्रशस्तपादभाष्य को हिन्दी अनुवाद तथा टिप्पणियों के साथ पण्डितों के समक्ष उपस्थित करते हुए मुझे विशेष हर्ष हो रहा है । हर्ष दो कारणों से है ( १ ) वर्तमानकाल में दुर्लभ इस टीका के साथ प्रशस्तपादभाष्य की पुस्तक मूल संस्कृत पुस्तकों के चाहनेवालों के लिए सुलभ हो जायगी । ( २ ) एवं प्रशस्तपादभाष्य और न्यायकन्दली का अर्थ हिन्दी संसार के सामने स्पष्ट हो जायगा । पुस्तक का सम्पादक हो या अनुवादक, सब के लिए यह अलिखित कर्त्तव्य निर्दिष्ट सा हो गया है कि पुस्तक के साथ वह कोई भूमिका अवश्य लिखे । तदनुसार मैं भी एक भूमिका लिख रहा हूँ । शास्त्रों से ज्ञान-लाभ करने के लिए पद और पदार्थों का सम्यक ज्ञान आवश्यक है । इनमें पद- ज्ञान के लिए जिस प्रकार व्याकरणशास्त्र का शरण लेना अनिवार्य है, उसी प्रकार पदार्थज्ञान के लिए कणादनिर्मित इस दर्शन की भी आवश्यकता है । वैशेषिक दर्शन की इस आवश्यकता को " काणादं पाणिनीयञ्च सर्वशास्त्रोपकारकम्" इत्यादि उक्तियाँ भी समर्थन करती हैं । अत एव वैशेषिक दर्शन की उपादेयता में तो कोई सन्देह ही नहीं है । वैशेषिकदर्शन और इसके सूत्र Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir इसके तीन नाम अधिक प्रसिद्ध हैं - ( १ ) वैशेषिकदर्शन, ( २ ) औलूक्यदर्शन और ( ३ ) काणाददर्शन | इन में 'वैशेषिक' नाम के प्रसङ्ग में ६ प्रकार की युक्तियाँ प्रचलित हैं - ( १ ) 'अन्यत्र अन्त्येभ्यो विशेषेभ्यः' ( १-२-६ ) इस सूत्र के अनुसार अन्त्य' विशेष पदार्थ के साथ सम्बद्ध जो 'दर्शन' वही 'वैशेषिकदर्शन' है, क्योंकि दूसरे किसी भी दर्शन में इस प्रकार का विशेष' पदार्थ स्वीकृत नहीं है । अतः 'विशेष' रूप स्वतन्त्र पदार्थ के निरूपण के द्वारा यह अन्य दर्शनों से अलग समझा जा सकता है । अतः दूसरे दर्शनों से इसको अलग समझानेवाली यह 'वैशेषिकदर्शन' संज्ञा है । ( २ ) न्यायदर्शन में दुःखों की पूर्ण निवृत्ति को 'मोक्ष' कहा गया है । इस विनाश की 'अपवर्ग' माना गया है । मोक्ष के प्रसङ्ग में यह 'विशेषगुण' को माना है, अतः 'विशेष एवं वैशेषिकः ' शब्द के द्वारा मोक्ष के प्रसङ्ग में इस नाम 'वैशेषिकदर्शन' है । जो शास्त्र सम्बद्ध हो वही दर्शन में आत्मा के सभी विशेष गुणों के पूर्ण अतः सभी दर्शनों के द्वारा समान प्रतिपाद्य अवलम्बन कर उस के मूलतः उच्छेद को 'मुक्ति' इस स्वार्थिक प्रत्यय के द्वारा निष्पन्न 'वैशेषिक' का उक्त असाधारण्य ही प्रतिपादित होता है, अतः इस का फलतः 'विशेष' से, अर्थात् विशेषगुण' से मोक्ष के प्रसङ्ग में 'वैशेषिक' दर्शन है | ( ३ ) 'विगतः शेषो यस्य तत् विशेषम् ' इस व्युत्पत्ति के अनुसार निर्विशेष ही प्रकृत 'विशेष' शब्द का अर्थ है । 'विशेष एव वैशेषिकम्' इस प्रकार स्वार्थिक प्रत्यय For Private And Personal

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