________________ पालन हो गए हैं -यह निश्चित कर क्रोधादि अशुभ भावों का त्याग कर देने पर गुरु का उपदेश श्रावक के मनोबल को बढ़ाता है। ___‘बाह्य त्याग गरिष्ठ भोजन का त्याग कर हल्का आहार, खिचड़ी आदि, पेय में दूध, छाछ आदि क्रमशः उपयोग में लावें। गर्म जल और उसका त्याग भी अपना मरण निश्चित जान कर देते हैं। यह सब परिस्थिति को समझ कर अन्त में होता है। समाधिकर्ता के पास गुरु रहते हैं, जो सम्बोधन करते रहते हैं। __सल्लेखना के पाँच अतिचार— 1. जीवन की इच्छा 2. मरण की इच्छा 3. मित्रानुराग 4. भूतकाल के सुखों का स्मरण 5. आगामी भव में सुखाकांक्षा हैं। मुनिराज भी क्षपक अवस्था में निर्यापकाचार्य के द्वारा इसी प्रकार समाधिमरण करते हैं। भूख-प्यास की भयंकर असह्य वेदना होने पर निर्यापकाचार्य बाहर से लाये शुद्ध आहार को दिखाते हैं और साहस दिलाते हैं, खिलाते नहीं हैं। जल भी नहीं पिलाते हैं। आहार ग्रहण से होने वाले तीव्र पापबन्ध का फल बताकर क्षपक का विवेक जागृत कराते हैं। अन्त समय में निर्यापकाचार्य क्षपक को धर्मोपदेश इस प्रकार देते हैं जिससे उसे शान्ति प्राप्त हो। चाणक्य, अभिनन्दन आदि 500 मुनि, पाण्डव, सुकुमाल आदि के उदाहरण देकर क्षपक में साहस का संचार करते हैं और इसे मृत्यु न मानकर मृत्यु महोत्सव एवं जीर्ण वस्त्रों को छोड़कर नूतन वस्त्र धारण के समान क्षपक की समीचीन दृष्टि उत्पन्न कराते हैं। समय हो तो समाधिमरण पाठ, बारह भावना, णमोकार मन्त्र आदि सुनाते हैं। मुनि विद्वान् या प्रबुद्ध हो, तो शुद्धोऽहं, सिद्धोऽहं, वृद्धोऽहं पढ़कर उसका महत्त्व बताते हैं। स्वानुभूति की ओर आकर्षित करते हैं जिसका क्षपक ने अभ्यास किया होता है। यह समाधिपूर्वक मरण की विधि है। यम, नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार (इन्द्रिय, संयम), धारणा-दृष्टि (नासाग्र रखकर मनोरोधी), ध्यान और पश्चात् सर्वथा तन्मयता समाधि है। इस प्रकार सल्लेखना की अन्तिम स्थिति समाधिमरण है। यदि हमें दुर्गति नरक, तिर्यंच और व्यन्तर योनि से अपनी रक्षा करनी है तो सल्लेखना या समाधिमरण की ओर बढ़ना अत्यावश्यक है। हमारी वर्तमान उदय में आ रही आयु, शरीरत्याग तक कुल कितनी है, इसकी जानकारी ज्योतिष व जन्मपत्रिका से ज्ञात कर लेवें। मान लीजिए हमारी आयु 90 वर्ष की है। इसके तीसरे हिस्से में आगामी पर्याय की आयु का बन्ध होता है। यदि इसमें भी बन्ध नहीं हुआ तो शेष 30 वर्ष के तीसरे हिस्से में आयु बन्ध होगी। यानि 80 वर्ष की उम्र में आगामी आयुबन्ध होगा। इसमें भी नहीं बन्धे तो शेष 10 वर्ष के भी तीसरे हिस्से में आयु बन्द होगा। इसप्रकार यदि 8वें हिस्से में भी आयु बन्ध न हो तो अन्तिम मरण के अन्तर्मुहूर्त में आयुबन्ध कर, जिन परिणामों से बन्ध हुआ है, यह जीव कार्मण योग द्वारा एक 7800 प्राकृतविद्या-जनवरी-दिसम्बर (संयुक्तांक) '2004