Book Title: Prakrit Vidya Samadhi Visheshank
Author(s): Kundkund Bharti Trust
Publisher: Kundkund Bharti Trust

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Page 204
________________ समाचार-दर्शन संयम-वर्ष में समर्पित आचार्य विद्यानन्द-पुरस्कार ___ 15 जनवरी, 2004 को भारतीय ज्ञानपीठ नई दिल्ली द्वारा प्रवर्तित शौरसेनी, प्राकृभाषा एवं साहित्य विषयक आचार्य विद्यानन्द पुरस्कार 2000 एवं 2001 कुन्दकुन्द भारती के तत्त्वावधान में केन्द्रीय विद्यालय संगठन सभागार, नई दिल्ली में परमपूज्य आचार्यश्री विद्यानन्द जी मुनिराज के पावन सान्निध्य में प्रो. लालचन्द जैन (भुवनेश्वर) और डॉ. ऋषभचन्द्र जैन (वैशाली) को प्रदान किये गये। इस अवसर पर आचार्यश्री विद्यानन्द जी ने कहा कि- विद्वानों के सम्मान की परम्परा राजा विक्रमादित्य, राजा भोज के समय से चली आ रही प्राचीन भारतीय परम्परा है। प्राचीन परम्पराओं और रूढ़ियों का आज भी अनुपालन होना चाहिये। जैनधर्म संस्कृति, आगमों की रक्षा एवं प्रचार-प्रसार में हमारे मनीषी विद्वानों का अथक परिश्रम एवं पुरुषार्थ दीप ज्योति की भाँति सदैव हमारा मार्ग प्रकाशित करता रहेगा। - सभा की अध्यक्षता करते हुए पद्मश्री महामहोपाध्याय डॉ. सत्यव्रत शास्त्री ने बताया कि इण्डोनेशिया और लाओस में कलिंग के नाम पर आधारित जातियाँ आज भी अस्तित्व में हैं। वे लोग कलिंग से वहाँ गए थे और अपनी पुरानी रूढ़ियों और मान्यताओं का आज भी पालन कर रहे हैं। ___ श्री लाल बहादुर शास्त्री राष्ट्रिय संस्कृत विद्यापीठ, नई दिल्ली के कुलपति प्रो. वाचस्पति उपाध्याय ने विद्यापीठ में प्राकृत और जैनदर्शन के साथ-साथ ब्राह्मी लिपि के अध्ययन-अध्यापन हेतु जैन चेयर की स्थापना पर जोर देते हुए जैन समाज से इस कार्य में योगदान के लिये अपील की। साहू (डॉ.) रमेश चन्द्र जैन ने प्राकृत शोध संस्थान वैशाली के केन्द्रीय सरकार द्वारा अधिग्रहण किये जाने की आवश्यकता बतलाते हुए उसके विकास पर जोर दिया। विद्वानों का परिचय कुन्दकुन्द भारती के निदेशक प्रो. (डॉ.) राजाराम जैन ने दिया। प्राकृत विद्या के प्रबन्ध सम्पादक डॉ. सत्यप्रकाश जैन ने प्रशस्तियों का वाचन किया। मंच संचालन श्री सतीश जैन (आकाशवाणी) ने किया। प्रो. लालचन्द्र जैन ने अपने सम्मान के लिये आभार व्यक्त करते हुए खारवेल के हस्तिगुफा शिलालेख पर प्रकाश डाला। 20200 प्राकृतविद्या-जनवरी-दिसम्बर (संयुक्तांक) '2004

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