________________ कुलपति प्रो. (डॉ.) वाचस्पति उपाध्याय ने गुरु की अनन्त महिमा का उल्लेख करते हुए कहा- सूर्य-चन्द्र बाह्य अन्धकार नष्ट कर सकते हैं परन्तु गुरु अन्तस् का अन्धकार दूर कर स्व-पर उपकार में प्रवृत्त कराते हैं। वस्तु तत्त्व का सम्यग्दर्शन ज्ञान और चारित्र गुरुकृपा के बिना नहीं हो सकता। समारोह-संयोजक श्री सतीश जैन, आकाशवाणी ने कहा- आज का यह समारोह आचार्यश्री विद्यानन्द जी मुनिराज के 42वाँ श्रमण दीक्षा महोत्सव एवं चारित्रचक्रवर्ती आचार्य शान्तिसागर जी के 131वें जन्म वर्ष पर आयोजित संयम वर्ष का समापन समारोह भी है। ___ डॉ. सुभाष अक्कोळे ने सम्मान के प्रति आभार व्यक्त करते हुए कहा- मुझे खुशी है कि समाज के लिए किए गए कार्यों के लिए भी समाज सम्मान करता है यह सन्तोष का विषय है। आचार्यश्री शान्तिसागर जी गौरव-पुरुष थे, उनके नाम पर मुझे सम्मानित किया गया है यह सम्मान पूरे महाराष्ट्र का है। ____ पद्मश्री श्रीमती सरयू दफ्तरी एवं श्रीमती अनीता कोठारी ने पुष्पगुच्छ भेंट कर अतिथियों का स्वागत किया। श्री पुनीत जैन (प्रकाशक, नवभारत टाइम्स), डॉ. त्रिलोकचन्द्र कोठारी, श्री चक्रेश जैन, श्री निर्मल चन्द्र सेठी, श्री आर.के. जैन मुम्बई, श्री डालचन्द जी सागर, पद्मश्री ओमप्रकाश जैन दिल्ली, श्री सुरेशचन्द्र जैन (EIC), श्री सुरेन्द्र कुमार जौहरी, श्री सतीशचन्द्र जैन (SCJ), श्री डी.पी. कोठारी, श्री जिनेन्द्र कुमार जैन एवं श्री महेश जैन एवं दिल्ली के उपनगरों से पधारे जैन मन्दिरों के प्रधानों ने मुख्य अतिथि एवं विशिष्ट अतिथि का स्वागत किया और आचार्यश्री को विनयांजलि अर्पित की। - अन्त में श्री सी.पी. कोठारी ने परमपूज्य आचार्यश्री एवं उपस्थित साधु-संघ के प्रति अपनी विनयांजलि एवं मुख्य अतिथि एवं उपस्थित समुदाय एवं कार्यकर्ताओं के प्रति कृतज्ञता ज्ञापित की। कृष्णा नगर जैनसमाज के संयोजन में समस्त उपस्थित समुदाय ने 42 दीपकों से पूज्य आचार्यश्री की आरती की। .. आध्यात्मिक संगीत मुक्ति प्रदान करता है : आचार्यश्री विद्यानन्द नई दिल्ली 12 सितम्बर। परमपूज्य आचार्यश्री विद्यानन्द जी मुनिराज के सान्निध्य में कुन्दकुन्द भारती में आयोजित एक भव्य समारोह में श्री डी.सी. जैन फाउण्डेशन द्वारा प्रवर्तित संगीत समयसार पुरस्कार दिल्ली विश्वविद्यालय में रीडर डॉ. (श्रीमती) उमा गर्ग को प्रदान किया गया। उपराज्यपाल श्री बी.एल. जोशी ने उन्हें शॉल, प्रशस्ति पत्र एवं एक लाख रुपये की राशि प्रदान कर भक्ति संगीत शिरोमणि की उपाधि से अलंकृत किया। आचार्यश्री ने अपने आशीर्वचन में कहा- प्राचीन काल से ही संगीत का विशेष महत्त्व है। प्रथम तीर्थंकर भगवान् आदिनाथ ने अपने पुत्र भरत को संगीत की प्राकृतविद्या जनवरी-दिसम्बर (संयुक्तांक) '2004 00209