Book Title: Prakrit Vidya Samadhi Visheshank
Author(s): Kundkund Bharti Trust
Publisher: Kundkund Bharti Trust

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Page 212
________________ शिक्षा दी थी। आध्यात्मिक संगीत से आस्तिकता पैदा होती है तथा टैंशन खत्म होती है। महिलाओं को संगीत में विशेष रुचि लेनी चाहिये। आचार्यश्री ने महिलाओं की शिक्षा पर भी विशेष बल दिया। उपराज्यपाल श्री बी.एल. जोशी ने आचार्यश्री को भावभीनी विनयांजलिं अर्पित करते हुए कहा- मुझ पर जैन संस्कारों का बचपन से ही बहुत प्रभाव है। आचार्यश्री अहिंसा की प्रतिमूर्ति हैं यह समारोह संगीत के सम्मान का समारोह है। भक्ति संगीत आत्मकल्याण का मार्ग है, सम्मान को ग्रहण करनेवाले का भी विशेष महत्त्व होता है। धर्म-ज्ञान और संगीत यदि जीवन में धारण कर लिया जाये तो जीवन की समस्याओं का समाधान निकल सकता है। . .. समारोह की अध्यक्षता करते हुए सांसद सुश्री निर्मला ताई देशपाण्डे ने कहाआचार्यश्री संगीत कला के ज्ञाता और अद्भुत प्रेरणास्रोत हैं। आचार्य विनोबा भावे पर भी भक्ति संगीत का प्रभाव अपनी माँ से पड़ा था। संगीत के विषय में एक बार पण्डित नेहरू ने कहा था कि महान् संगीतज्ञ एम.एस. सुब्बालक्ष्मी के विषय में कहा था कि वे संगीत के शिखर पर हैं जबकि मैं तो मात्र प्रधानमन्त्री हूँ। प्रो. वाचस्पति उपाध्याय ने कहा- संगीत वह विद्या है जिससे जीवन मुखरित होता है। साम्प्रदायिक सौहार्द, भाईचारा को बढ़ाने में संगीत का विशेष महत्त्व है। - डॉ. (श्रीमती) उमा गर्ग ने आभार व्यक्त करते हुए कहा- पूज्य आचार्यश्री की कृपा से ही मैं भक्ति संगीत से जुड़ी और उनके आशीर्वाद के कारण ही जैन भक्ति संगीत को जाना और गाया तथा समयसार, द्रव्यसंग्रह, छहढाला एवं महावीर चौपाई की कैसेट तैयार हुए। ___ डॉ. (श्रीमती) उमा गर्ग ने कई भावपूर्ण भजन प्रस्तुत किये। डॉ. वीरसागर जैन ने मंगलाचरण, डॉ. सत्यप्रकाश जैन ने प्रशस्ति वाचन, श्रीमती सरयू ताई दफ्तरी, नवभारत टाइम्स के प्रकाशक श्री पुनीत जैन, संयोजक महेन्द्र कुमार जैन एवं श्री डी.सी. जैन फाउण्डेशन के अध्यक्ष श्री राकेश जैन ने आचार्यश्री को विनयांजलि अर्पित की और अतिथियों का स्वागत किया। सभा का सफल संचालन श्री सतीश जैन (आकाशवाणी) ने किया। मन बड़ा चंचल है, इसे वश में करो : आचार्यश्री विद्यानन्द नई दिल्ली, प्राचीन अग्रवाल दिगम्बर जैन पंचायत द्वारा कुन्दकुन्द सभा स्थल परेड ग्राउण्ड में आयोजित दशलक्षण पर्व में उत्तम संयम धर्म की व्याख्या करते हुए आचार्यश्री विद्यानन्द जी मुनिराज ने कहा कि- शरीर रूपी गाड़ी को नियम के ब्रेक से सन्मार्ग पर लगाना ही संयम धर्म का पालन है। संयम से सम्यक् दर्शन पुष्ट होता है। समारोह में कुन्दकुन्द भारती के तत्वावधान में भारतीय ज्ञानपीठ द्वारा प्रवर्तित प्राकृत एवं संस्कृत भाषा के विकास में उल्लेखनीय योगदान के लिए 2101 प्राकृतविद्या-जनवरी-दिसम्बर (संयुक्तांक) '2004

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