Book Title: Prakrit Vidya Samadhi Visheshank
Author(s): Kundkund Bharti Trust
Publisher: Kundkund Bharti Trust

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Page 202
________________ का मिलाप था, अधिक समय का नहीं। जैसे सराय में राहगीर दो-चार रात्रि को एकत्रित रहें और पीछे बिछुरते समय शोक करें तो यह कहाँ की बुद्धिमानी है? अब मेरा आप सबके ऊपर क्षमा भाव है। आप सब आनन्द से रहो। अनुक्रम से सबकी यही गति होनी है, संसार का ऐसा चरित्र जानकर कौन ऐसा बुद्धिमान है जो इससे प्रीति करेगा? पुत्र को समझाते हुए कहता है- अहो पुत्र ! तुम समझदार हो, मुझसे किसी प्रकार का मोह नहीं करना। एक जिनेन्द्र भगवान के द्वारा प्रतिपादित धर्म का आराधन करना। धर्म सुख देने वाला है, माता-पिता कोई सुख देने वाले नहीं हैं। जो माता-पिता को सुख का कर्ता मानते हैं यह सब एक मोह का ही माहात्म्य है, कोई किसी का कर्ता नहीं है और न कोई किसी का भोक्ता है। सर्व ही पदार्थ अपने स्वभाव के कर्ता भोक्ता हैं, इसीलिए मैं आप से कहता हूँ कि आप व्यवहार मात्र से मेरी आज्ञा मानते हो। यदि आप यथार्थ में आज्ञाकारी हो तो जो मैं कहूँ सो करो। देखो ! प्रथम तो देव, गुरु, धर्म की अवगाढ़ प्रतीति करो, साधर्मियों से मित्रता रखो, दान, तप, शील और संयम से अनुराग करो, स्व-पर का भेदविज्ञान निरन्तर बना रहे- ऐसा उपाय करो और संसारी जीवों से प्रीति मत करो, क्योंकि ये तीव्र संसार में सरागी जीवों की संगति से ही महादुःख भोग रहे हैं, इसलिए सरागी जीवों की संगति अवश्य छोड़ना, धर्मात्मा पुरुषों की संगति करना, क्योंकि धर्मात्माओं की संगति से उभयलोकों में सुख की प्राप्ति होती है। इस लोक में तो महानिराकुलता रूप सुख की प्राप्ति होती है और यश भी होता है तथा परलोक में स्वर्गादिक सुख भी मिलते ही हैं, किन्तु अनपाय मोक्ष में जाकर शिव रमणी का भर्ता भी हो जाता है तथा निराकुल, अतीन्द्रिय, अनुपम, बाधारहित, शाश्वतं और अविनाशी सुख का रसास्वादन करता हुआ अनन्त काल तक अपने आप में ही तृप्त रहता है, इसीलिए हे पुत्र ! आपको यदि मेरे वचन समीचीन मालूम होते हों तथा इस शिक्षा में आपको अपनी कुछ भलाई दिखाई देती हो तो मेरी शिक्षा अवश्य अंगीकार करो और यदि आपको मेरे वचन झूठ दिखाई देते हों तथा इसमें आपको अपनी भलाई दिखाई न देती हो तो मेरे वचन स्वीकार मत करो। मुझे तुमसे कोई प्रयोजन नहीं है। दया बुद्धि से आपको उपदेश दिया है मानो तो मानो और न मानो तो आपकी आप जानो। इसप्रकार समाधि के सम्मुख हुआ सम्यग्दृष्टि जीव जब अपनी आयु अल्प जानता है तब जो कुछ दान-पुण्य करना होता है वह सब स्वयं अपने हाथ से करता है, पश्चात् जिन-जिन पुरुषों को जो कोई भी बात बतलानी होती है उसे कहकर निःशल्य हो जाता है। कार्य करने वाले सभी स्त्री-पुरुषों को जो कुछ देना है वह देकर विदा कर देता है तथा धार्मिक कार्यों में सहयोग देने वाले पुरुषों को बुलाकर 200 00 प्राकृतविद्या-जनवरी-दिसम्बर (संयुक्तांक) '2004

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