Book Title: Prakrit Vidya Samadhi Visheshank
Author(s): Kundkund Bharti Trust
Publisher: Kundkund Bharti Trust

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Page 207
________________ प्रयोग किया गया होगा, क्योंकि उसका नाम पाण्डुलिपि है, बाद में भोजपत्र, ताड़पत्र, काष्ठ पट्टिक, ताम्रपत्र आदि का उपयोग होने लगा। सबसे अधिक उपयोग भोजपत्र और ताड़पत्र का हुआ है, ऐसा ग्रन्थों से उल्लेखित होता है। घटनाक्रम का उल्लेख करते हुए शास्त्री जी ने कहा- इस देश का नाम सम्राट खारवेल द्वारा निर्मित हस्तिगुफा से प्राप्त शिलालेख भगवान महावीर के निर्वाण के 84 वर्ष के पश्चात का मिलता है, जो जैन शिलालेख है। ___ डॉ. नलिन शास्त्री ने आगम-संरक्षण और पुस्तकालय पर अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा- हमारे आचार्यों ने आगमों की रचना कर तीर्थंकरों की वाणी को लिपिबद्ध किया। हमारे पूर्वजों ने उनका संरक्षण कर आज की पीढ़ी को अतुल आगम भण्डार सौंपा है। उनके संरक्षण के लिए कुछ विशेष प्रकार के तेलों का उपयोग करना पड़ता था परन्तु आज इस वैज्ञानिक युग में सूक्ष्म से सूक्ष्म जीवों की रक्षा करते हुए हजारों-हजारों वर्षों के लिए आगमों को सुरक्षित किया जा सकता है। हमें अपने आगमों के संरक्षण के लिए इस आधुनिक प्रणाली का उपयोग करना चाहिए। . डॉ. रमेश चन्द्र चतुर्वेदी ने कहा- भारतीय ज्ञान-परम्परा और भाषा को किसी एक धर्म के साथ जोड़ देना भाषा के साथ अन्याय है। भाषा तो अपने विचारों को लोक में फैलाने का माध्यम है। धर्म चिन्तन और विचारों के सम्प्रेषण के लिए जैनाचार्यों ने प्राकृत, विशेष तौर पर शौरसेनी प्राकृत की और विद्वानों को आकर्षित किया है। दो दिवसीय कार्यक्रम में डॉ. वीरसागर जैन, डॉ. सुरेश चन्द्र जैन, डॉ. अशोक शास्त्री आदि विद्वानों ने अपने विचार व्यक्त किये। सभा संचालन श्री सतीश जैन आकाशवाणी, गोष्ठी के संयोजक डॉ. सत्यप्रकाश जैन और उपसंहार डॉ. रमेशचन्द जैन बिजनौर ने किया। अहिंसक संस्कृति ने ही देश को महान बनाया : आचार्यश्री विद्यानन्द नई दिल्ली। सिद्धान्तचक्रवर्ती परमपूज्य आचार्यश्री विद्यानन्द जी मुनिराज ने कुन्दकुन्द भारती में एक विशाल सभा में चातुर्मास की स्थापना करते हुए कहा किसंसार में केवल एक ही धर्म है वह है अहिंसा धर्म। सभी मनुष्य, पशु, पक्षियों को जीने का समान अधिकार है। आत्मानुशासन, अनेकान्त, अहिंसा और अपरिग्रह का पालन करने से ही विश्व में सुख-शान्ति स्थापित हो सकती है। आचार्यश्री ने आगे कहा- चार्तुमास सत्संग, स्वाध्याय और धर्म-ध्यान के लिए उत्तम समय है। स्वाध्याय से असंख्यात कर्मों की निर्जरा होती है। आलस्य दूर होता है, प्रसन्नता द्विगुणित होती है। वीतराग भगवान् की वाणी यदि मन को छू जाए तो आत्मकल्याण अवश्य होगा। आचार्यश्री ने मांगलिक क्रियाओं के साथ प्राकृतविद्या-जनवरी-दिसम्बर (संयुक्तांक) '2004 00 205

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