Book Title: Prakrit Vidya Samadhi Visheshank
Author(s): Kundkund Bharti Trust
Publisher: Kundkund Bharti Trust

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Page 141
________________ बदी 3 सोमवार को आब्लुव महाप्रभु 18 कम्पणों का शिरोरत्न महा-प्रभुओं का सूर्य तवनिधि बोम्म गौड संन्यसन की विधिपूर्वक मरकर स्वर्ग को गया। ___ उद्रि के तालाब की मोरी के पास के पाषाण {1388 ई.} पर अंकित है कि मुनिभद्र ने हिसुगल बसदि को बनवाया और मुलुगुण्ड जिनेन्द्र मन्दिर का विस्तार किया। जिस समय हरिहरराय विजयनगरी में विराजमान थे, सेन गण के वृद्धजनों ने उस यति के गुणों को नमस्कार किया था। तपश्चरण के बाद उन्होंने बहुत समय तक निश्चित जीवन बिताया। अन्त में उन्होंने अपना अन्त निकट जानकर विधि का अनुष्ठान करके उच्चावस्था के लिए अपने को तैयार किया तथा चैत्र शुक्ल त्रयोदशी, शनिवार को संन्यसन की विधिपूर्वक प्राणोत्सर्ग करके शाश्वत सुख का आनन्द लिया। हिरे आवलि के 16वें पाषाण शक 1211-1289 ई.} पर अंकित है कि हिरिय चन्दप्प ने संन्यसन विधिपूर्वक समाधि कर स्वर्ग प्राप्त किया। यहीं के 11वें पाषाण पर काल गौड़ के समाधिपूर्वक स्वर्ग प्राप्ति का उल्लेख है। हलेसोरब में उसके दक्षिण पूर्व में तालाब के उत्तरीय नष्ट बन्ध के पास के समाधि पाषाण पर शक सं. 1317-1395 ई.} अंकित है कि सोरब के तम्म गौड को क्षयरोग हो जाने से घट्टों के नीचे नगिलेयकोप्प में दवाई लेने के लिए गया। लेकिन चूंकि बीमारी उसे छोड़ने वाली नहीं थी, अतः वह सिद्धान्तिदेव की आज्ञा के अनुसार पंचनमस्कार के उच्चारणपूर्वक जिन के पादमूल में गया। हिरे आवली में तीसरे पाषाण {1395 ई.} पर अंकित है कि जिस समय राजधानी हस्तिनापुर-विजयनगर और समस्त पट्टणों के अधीश्वर महाराजाधिराज हरिहर राज्य कर रहे थे, उनके मन्त्री हरिहर राय के समय में फाल्गुन मास की बहुला एकादशी को बुधवार के दिन कानरामण की स्त्री काम गौण्डिने संन्यसन लेकर मृत्यु को प्राप्त हो स्वर्ग गयी। __हुम्मच में पार्श्वनाथ बसदि के मुखमण्डप के तीसरे पाषाण शक 1321-1399 ई.} पर अंकित है कि होम्बुच्च के पायण्ण ने संन्यसन और सल्लेखना के द्वारा अपमे को शरीर-भार से मुक्त किया और स्वर्ग प्राप्त किया। . हिरे आवलि में 5वें पाषाण शक 1321-1399 ई.} पर अंकित है कि हरिहरराय के राज्य में शक वर्ष 1321 आषाढ़ शुक्ल 12 बुधवार को गौण्डिने संन्यसन विधिपूर्वक समाधि धारण कर स्वर्ग प्राप्त किया। भारंगी कल्लेश्वर बसदि के पाषाण पर {1337-1415 ई.} अंकित है कि गोष्पण ने समाधि की रस्म से शरीर-त्याग कर स्वर्ग प्राप्त किया। हिरे आवली में 17वें पाषाण पर अंकित है कि बोम्मि गौण्डि ने शक 1325 प्राकृतविद्या जनवरी-दिसम्बर (संयुक्तांक) '2004 0 139

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