________________ हुम्मच के शक 1178 {1256 ई.} के शिलालेख के अनुसार यम, नियम, स्वाध्याय, ध्यान, मौनानुष्ठान, जप, समाधि तथा शील गुण से सम्पन्न, त्रिशल्य रहित त्रिपद अपूर्वकरण, अधःकरण और अनिवृत्तिकरण} को धारण कर, त्रिगारव से मुक्त होकर त्रिगुप्ति से संयुक्त होकर, सप्त भय से रहित होकर महामण्डलाचार्य और राजगुरु पुष्पसेन देव और अकलंकदेव ने संन्यसन विधि से शरीर त्याग कर मुक्ति का मार्ग प्राप्त किया। परमात्मा के ध्यान में अपने को लगाकर शाश्वत सुख देने वाले पंच नमस्कार मन्त्र का उच्चारण करते हुए बलिदान मुनि के चरण-कमलों के भ्रमर पुष्पसेन मुनि ने मुक्ति फल प्राप्त किया। आनन्द के साथ संभले हुए पुष्पसेन मुनि ने इच्छापूर्वक देहत्याग किया। हलेबीड की बस्तिहल्लि में शान्तिनाथेश्वर बसदि के एक पाषाण पर लेख अंकित है कि बालचन्द्र के पुत्र अभयचन्द्र रात को अपने सल्लेखना के समय को जानकर उसकी विधि को धारण कर दिवंगत हुए। यह शिलालेख शक 1201 {1279 ई.} का है। तवनन्दि में पाँचवें समाधि पाषाण पर एक लेख. ई. 1292} उत्कीर्ण है, जिसके अनुसार वीर महादेवण्ण के कुल को आनन्दित करने के लिए राम की कुक्षि से दण्डेशु माधव उत्पन्न हुआ था। वह माधवचन्द्र देव के चरण-कमलों का भ्रमर था। उसने तमाम कौटुम्बिक बन्धनों को छोड़कर जिनमन्दिर बनवाकर समाधिमरण पूर्वक स्वर्ग को प्रयाण किया। - हिरे आवली में ध्वस्त जिन बसदि के सामने के पाषाण पर {1295 ई. को} अंकित है कि यादव नारायण भुजबल प्रौढ़ प्रताप चक्रवर्ती रामचन्द्र के विजय राज्य के 23वें वर्ष में जो कि मन्मथ वर्ष का था, श्री मूलसंघ कोंडकुन्दान्वय तथा सुराष्ट्रगण के देवनन्दि देव के गृहस्थ शिष्य नालप्रभु आवलि काल गवुड समाधि विधि को धारण कर स्वर्ग गया। इसी प्रकार इसी बसदि के सामने के 14वें पाषाण पर 1296 ई. का} किसी के समाधिमरण धारण करने का उल्लेख है। इसी बसदि के सामने के दूसरे पाषाण पर {1296 ई. का शिरियम गौडि के सकल संन्यसन पूर्वक समाधिमरण का उल्लेख है। इसी बसदि के सामने के दूसरे पाषाण पर {1366 ई. का} अंकित है कि जिस समय विजयनगर और दूसरे समस्त पट्टण नगरों का अधीश्वर अभिनव बुक्क राय राज्य कर रहा था, उस समय सिद्धान्तदेव का गृहस्थ शिष्य आवलि बेच गौड़ के पुत्र चन्दगौड़ का छोटा भाई संन्यसन और समाधिविधि से मरकर स्वर्ग गया। तवनन्दि में ही तीसरे समाधिपाषाण पर {1301-1379 ई. का} अंकित है कि जिस समय वीर बुक्क राय के पुत्र हरिहर राय शासन कर रहे थे, उस समय पूष 13800 प्राकृतविद्या जनवरी-दिसम्बर (संयुक्तांक) '2004