________________ सल्लेखना और भारतीय दण्ड-विधान भारतीय दण्ड विधान की धारा 306 के अनुसार यदि कोई व्यक्ति आत्महत्या करने का प्रयास करे तो जो कोई ऐसी आत्महत्या का दुष्प्रेरण करेगा, वह दोनों में से, किसी भाँति के (सश्रम या साधारण) कारावास से, जिसकी अवधि दस वर्ष तक ही हो सकेगी, दण्डित किया जायेगा और जुर्माने से भी दण्डनीय होगा। एवं धारा 309 आत्महत्या करने का प्रयत्न - जो कोई आत्महत्या करने का प्रयत्न करेगा या उस अपराध के करने के लिए कार्य करेगा, वह सादा कारावास से जिसकी अवधि एक वर्ष तक ही हो सकेगी या जुर्माने से या दोनों से, दण्डित किया जायेगा। इस प्रकार यह स्पष्ट है कि जहाँ आत्महत्या के लिए दुष्प्रेरित करने वाले को दस वर्ष तक की सजा और जुर्माने का दण्ड दिया जा सकता है वहीं जो व्यक्ति आत्महत्या का प्रयास करता है उसे एक वर्ष की सजा या जुर्माने या दोनों से दण्डित किया जा सकता है। यह पहला अपराध है जहाँ भारतीय दण्ड विधान में अपराध करने के पश्चात् अभियुक्त को सजा नहीं मिलती क्योंकि आत्महत्या के पश्चात् अभियुक्त का अस्तित्व ही समाप्त हो जाता है किन्तु आत्महत्या के लिए दुष्प्रेरित करने वाले को अपराध पूर्ण होने के बाद भी सजा मिल सकती है। . . . माननीय उच्चतम न्यायालय ने पी. रथीनाम बनाम भारत सरकार एवं अन्य के प्रकरण में न्यायमूर्ति आर.एम. सहाय एवं न्यायमूर्ति बी.ए. हंसारिया की दो सदस्यीय खण्डपीठ ने भारतीय दण्ड संहिता की धारा 309 को भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 के परिप्रेक्ष्य में मौलिक अधिकारों का हनन घोषित किया था और दिनांक 26 अप्रैल 1994 को दिए गए निर्णय में धारा 309 आई.पी.सी. को संविधान के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन मानते हुए अवैध घोषित कर दिया था, साथ ही यह भी अवधारित किया था कि इस धारा को भारतीय दण्ड विधान से हटा देना चाहिए। खण्डपीठ ने इस निर्णय के प्रारम्भ में महात्मा गाँधी को उदधत करते हुए कहा कि- गाँधी जी ने एक बार कहा था कि मृत्यु हमारी दोस्त है। दोस्त का विश्वास करें। यह हमें आतंक और भय से मुक्ति देती है। मैं नहीं चाहता कि मैं असहाय और लकवे जैसी स्थिति में एक पराजित व्यक्ति की तरह चिल्लाता हुआ मरूँ।' इसी निर्णय में अंग्रेजी कवि विलियम एनवेट हैनले की यह पंक्तियाँ भी दी गई हैं कि- 'मैं स्वयं का मालिक हूँ और अपनी आत्मा का कप्तान।' इस खण्डपीठ ने संविधान के अनुच्छेद 21 की व्यापक समीक्षा करते हुए और उसके साथ अनुच्छेद 14 की भी समीक्षा करते हुए यह कहा था कि भारतीय संविधान का अनुच्छेद 21 जहाँ व्यक्ति को जीवित रहने का मौलिक अधिकार देता 16000 प्राकृतविद्या-जनवरी-दिसम्बर (संयुक्तांक) '2004