________________ है वहीं यह अनुच्छेद उसे मरने का भी अधिकार देता है। यदि कोई व्यक्ति किसी प्रकार से पीड़ित है, वह आत्महत्या का प्रयास करता है तो उसे दण्डित नहीं किया जाना चाहिए। इस निर्णय के अनुसार आत्महत्या का प्रयास किसी धर्म नैतिकता या सार्वजनिक नीति का विरोधी भी नहीं है। इस निर्णय में विधि आयोग द्वारा दी गई रिपोर्ट संख्या 42/1971 जिसके अनुसार आत्महत्या के प्रयास को अनौचित्यपूर्ण माना गया और धारा 309 को निरस्त करने का सुझाव दिया गया किन्तु संसद में विभिन्न तकनीकी कारणों से वह विधि का रूप नहीं ले सका। लगभग 20 पृष्ठों के निर्णय में उपर्युक्त न्यायमूर्तियों ने यह अवधारित किया कि धारा 309 भारतीय दण्ड संहिता के अनुच्छेद 21 में दिये गए मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करती है और इसीलिए उसे हटाया जाना चाहिए। __ इस निर्णय से किसी भी कारण से की गई.आत्महत्या के प्रयास को दण्डनीय नहीं माना गया, किन्तु यह निर्णय बहुत दिनों तक प्रभावी नहीं रह सका। इससे पहले कि निर्णय को लेकर भारतीय संसद कानून में कोई परिवर्तन या संशोधन करती, माननीय उच्चतम न्यायालय की पाँच सदस्यीय खण्डपीठ जिसमें न्यायमूर्ति श्री जे.एस. वर्मा, न्यायमूर्ति श्री जी.एन. रे., न्यायमूर्ति श्री एस.पी. सिंह, न्यायमूर्ति श्री फैजुद्दीन एवं न्यायमूर्ति श्री जी.टी. नानावटी थे, ने श्रीमती ज्ञानकौर बनाम स्टेट ऑफ पंजाब एवं अन्य अपीलों में एक साथ दिनांक 21.3.96 को दिये गए. निर्णय में 1994 के निर्णय को पलट दिया और उन्होंने अपने निर्णय में यह अवधारित किया कि भारतीय संविधान का अनुच्छेद 21 जीने का अधिकार किसी भी रूप में मरने के अधिकार को शामिल नहीं करता। जीवन-समाप्ति जीवन का संरक्षण नहीं कही जा सकती, इसीलिए भारतीय दण्ड विधान की धारा 309, जिसमें आत्महत्या के प्रयास को दण्डनीय ठहराया गया है, किसी भी प्रकार से भारत के संविधान के अनुच्छेद 21 का उल्लंघन नहीं करती और अवैध न होकर वैध है। लगभग दस पृष्ठों में दिए गए निर्णय में न्यायालय ने धारा 306 और 309 को वैध ठहराया और सन् 1994 में माननीय उच्चतम न्यायालय तथा 1987 में बम्बई उच्च न्यायालय द्वारा दिए निर्णयों को पलट दिया। इस प्रकार वैधानिक रूप से आत्महत्या का प्रयास या उसके लिए किया जाने वाला दुष्प्रेषण अपराध की श्रेणी में आता है और वह भारतीय दण्ड विधान के अन्तर्गत दण्डनीय है, किन्तु सल्लेखनापूर्वक किया गया समाधिमरण आत्महत्या का प्रयास या आत्महत्या नहीं है। बैरिस्टर चम्पतराय जैन ने ऐसे समाधिमरण को मृत्यु-महोत्सव कहा था। किसी विद्वान् कवि ने शायद ऐसी मृत्यु के लिए ही लिखा था निर्भय स्वागत करो मृत्यु का, मृत्यु एक विश्राम स्थल है। ** प्राकृतविद्या जनवरी-दिसम्बर (संयुक्तांक) '2004 00 161