Book Title: Prakrit Vidya Samadhi Visheshank
Author(s): Kundkund Bharti Trust
Publisher: Kundkund Bharti Trust

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Page 168
________________ आकुलित हों? बल्कि हमें तो पूर्णतः धैर्य धारण कर स्वरूपसन्मुखता में ही रहकर बारम्बार दुःखमयी संसार में भटकना न पड़े, ऐसा उपाय कर्तव्य है। लोक में जो कोई दिन-दो दिन की यात्रा को परदेश जाता हो तो उसके इस अवसर पर परिवारजन उत्तम से उत्तम मुहूर्त में, अपशकुनों से बचाते हुए मंगलद्रव्यों के समागम द्वारा शुभ शकुन मिलाते रहते हैं। जब एक दिन की यात्रा के लिए इतने यत्न तो फिर जहाँ से पुनः लौटकर नहीं आना, ऐसी परभव की महायात्रा पर भी हमारा कर्त्तव्य ज्ञान-दर्शन की आराधना एवं संयमभाव आदि शुभकार्य रूप, तत्त्वचर्चा चिन्तनादि रूप शुभ शकुन विचार करने का होना चाहिए। ऐसे समय में जब सब संयोगी, कुटुम्बीजन रोने-रुलाने का कार्य करें तब अपशकुन विचार कर. इनसे बचकर तत्त्वज्ञान का अभ्यास, उपदेश, बारह भावनाओं का चिन्तन लाभ लेकर अपने को विरक्तचित्त रहते हुए धर्मध्यान रत रहकर प्रसन्नता से समताभावों सहित देह छटने को देखना-जानना चाहिए। ____ काय और कषाय को कृश करते हुए स्वस्वरूप ध्याते हुए शान्तिपूर्वक शरीररूपी गृह को त्यागना सो ही सुमरण है। इसे ही समाधिमरण, सल्लेखनामरण, संन्यासमरण एवं मृत्यु-महोत्सव कहते हैं। कषाय सहित मरण को तो आत्मघात या कुमरण कहते हैं। समाधिमरण दो प्रकार का है- 1. सविचार समाधिमरण जिसका उत्कृष्ट काल 12 वर्ष है। 2. अविचार समाधिमरण अचानक मृत्यु आने पर किया जाता है। समाधिमरण के समय शुद्ध मनपूर्वक राग, द्वेष, मोह का त्याग कर सबसे क्षमा माँगें एवं करें। पाँच अतिचारों से बचें। बारह भावना, समाधिमरण, आत्मचिंतवन, संसार-शरीर-भोगों से विरक्त करनेवाली चर्चा करें तथा बड़े-बड़े सत्पुरुषों, सुकुमाल, गजकुमार, सुकौशल मुनिराजादि ने भारी परीषह उपसर्गजय कर समभावोंपूर्वक समाधिमरण साधा है, उनकी कथाएँ सुनें। ____ 17 प्रकार के मरणों को 5 में गर्भित करके श्री भगवती आराधना आदि ग्रन्थों में उनका विस्तृत विवेचन द्रष्टव्य है। संक्षिप्ततः निम्नानुसार है1. पण्डित-पण्डित मरण :- दर्शन-ज्ञान-चारित्र की अतिशयतापूर्वक केवलज्ञान आदि अनन्तचतुष्टय प्राप्त कर कषायरहित केवली भगवान् का निर्वाणगमन रूप देह-वियोग, पंडित-पंडित मरण है। 2. पण्डितमरण - आचारग्रन्थों की आज्ञाप्रमाण अहिंसा, सत्य, अचौर्य, ब्रह्मचर्य, अपरिग्रह रूप पाँचों महाव्रतों का निरतिचार पालन, समिति, गुप्ति सह स्वस्वरूप की विशेष स्थिरतापूर्वक, श्रेणी आरोहण द्वारा कषायों को जीतते हुए मुनिराजों के देह रूपी गृह का छूटना, जिसके होने पर दो-तीन भव में ही मोक्ष की प्राप्ति होती है पंडितमरण है। पण्डितमरण के तीन प्रकार हैं 166 JU प्राकृतविद्या जनवरी-दिसम्बर (संयुक्तांक) 2004

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