________________ समाधिमरण-पाठ है पं. दौलतराम कासलीवाल 17वीं शती के महाकवि पण्डित दौलतराम कासलीवाल की यह कृति मूलतः ढूंढाड़ी (राजस्थानी) भाषा में लिखित है, परन्तु यहाँ सर्वजनलाभाय आधुनिक राष्ट्रभाषा में रूपान्तर प्रकाशित किया जा रहा है। -सम्पादक समाधि नाम निःकषाय शान्त परिणामों का जानना। ऐसा इसका स्वरूप है। जो सम्यग्ज्ञानी पुरुष हैं, उनका यह स्वभाव सहज ही होता है कि वे समाधिमरण को ही चाहते हैं। वे निरन्तर ऐसी भावना भाते हैं कि जब भी मरण का अवसर आवे तब मैं ऐसा सावधान रहूँ जैसे किसी सोते हुए सिंह,को किसी महापुरुष ने ललकारा कि हे सिंह ! उठो, अपना पुरुषार्थ करो। पुरुषार्थ करो। देखो ! आपके ऊपर बैरियों की फौज आ पहुँची है। शीघ्र ही गुफा से बाहर निकलो ! और जब तक बैरियों का समूह कुछ दूर है तब तक तुम उसे जीतने का कुछ उपाय कर लो, क्योंकि महापुरुषों की यही रीति है। महापुरुष के वचन सुनकर शार्दूल शीघ्र ही उठा, और गुफा के बाहर आकर ऐसी गुंजार लगाई मानो आसाढ़ मास में इन्द्र का ही धड़का हुआ हो। सिंह की भयंकर गर्जना सुनकर बैरियों की फौज के हाथी, घोड़े और मनुष्य आदि कम्पायमान हो गये और सिंह को जीतने में असमर्थ होता हुआ हाथियों का सरदार आगे पैर भी नहीं रख सका। हाथियों के हृदय में सिंह का भय बैठ गया। इससे वे धीरज छोड़ बैठे अर्थात् सिंह का पराक्रम.सहन नहीं कर सके। इसीप्रकार सिंह स्थानीय सम्यग्ज्ञानी पुरुष मरण-समय में अपने पास आने वाली कर्म रूपी बैरियों की सेना को जीतने का विशेष उद्यम करता है। कर्मों का आक्रमण जानकर सम्यग्ज्ञानी पुरुष सिंह के सदृश कायरता का दूर से ही परित्याग करता हुआ सावधान रहता है। सम्यग्दृष्टि पुरुष के हृदय में आत्मा का स्वरूप देदीप्यमान प्रगट प्रतिभासित होता है। कैसा है उसका प्रतिभास? ज्ञानज्योति से प्राप्त होने वाले आनन्द रस से भरा हुआ, साक्षात् पुरुषाकार, अमूर्तिक चैतन्य 188 00 प्राकृतविद्या-जनवरी-दिसम्बर (संयुक्तांक) '2004