Book Title: Prakrit Vidya Samadhi Visheshank
Author(s): Kundkund Bharti Trust
Publisher: Kundkund Bharti Trust

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Page 142
________________ 1403 ई. में भाद्रपद बहुल सप्तमी सोमवार रोहिणी नक्षत्र में संन्यसन विधिपूर्वक शरीर के भार को छोड़कर स्वर्ग प्राप्त किया। * हिरे आवलि के 19वें पाषाण पर अंकित है कि शक वर्ष 1339 के चैत्र बहुल 10 गुरुवार को गोपगौण्ड ने समाधि धारण कर स्वर्ग प्राप्त किया। हदिकल्लु में रते हक्कल के पास के समाधि पाषाण पर कालि गावुण्डि के समाधि धारण कर 1417 ई. में आषाढ़ शुक्ल 1 बृहस्पतिवार को स्वर्ग प्राप्त करने का वर्णन है। . हिरे आवलि के 20वें पाषाण शक 1343-1421} पर समाधि के स्मारक का उल्लेख है। यहीं के 18वें पाषाण पर इसी वर्ष फाल्गुन सुदि 4 को मदुक गौड की समाधि का उल्लेख है। __ मलेयूर उप्पमवल्लि परगना में पहाड़ी पर स्थित गुण्डीन ब्रह्मदेवरु के मार्ग में} शिलालेख के अनुसार शक सं. 1735-1813 ई.} देशीयगण के अग्र कनकगिरि के प्राप्त सिंहासन के ईश भट्टाकलंक ने इस टीले पर सुमरणपूर्वक. स्वर्गलोक को प्राप्त किया। शक संवत् 785 में बेंटूर में एक शिलालेख लिखा गया, जिसमें चिक्कण्ण नामक अधिकारी को कुछ भूमि दिए जाने का उल्लेख है। व्रतों का पालन और संन्यसन इनका भी उल्लेख हुआ है। अतः यह समाधिमरण का स्मारक प्रतीत होता है। चिक्कहनसोगे के 10वीं सदी के एक निषधिलेख में नागकुमार की पत्नी जक्कियब्बे के समाधिमरण का उल्लेख है। यहीं के एक अन्य शिलालेख 10वीं सदी का प्रारम्भ} में गंगराज ऐरेय के समय एलाचार्य के समाधिमरण का तथा उनके शिष्य कल्नेलेदेव द्वारा उनकी निषधि की स्थापना की उल्लेख है। ___ उम्मत्तूर कर्नाटक के 10वीं सदी के लेख में विमलचन्द्र के शिष्य सोत्तियूर के शासक मारम्मय के पुत्र सिन्दय्य के समाधिमरण का उल्लेख है। ___ अंकनाथपुर (कर्नाटक के 10वीं सदी के अंकनाथेश्वर मन्दिर की छत में लगे एक अभिलेख में प्रभाचन्द्र सिद्धान्त भट्टारक की शिष्या देवियब्बे के समाधिमरण का उल्लेख है। 10वीं सदी के कोडिहल्लि शिलालेख में किसी मय्य के समाधिमरण का निर्देश है। कोप्पल रायचूर, कर्नाटक के 108 ई. के शिलालेख में सिंहनन्दि आचार्य के इंगिनीमरण तथा उनकी स्मृति में कल्याणकीर्ति द्वारा एक जिनेन्द्र चैत्यालय के निर्माण का उल्लेख है। ___ बेचारक बोमलापुर (कर्नाटक के शक 935 सन् 1013 के शिलालेख में 14000 प्राकृतविद्या-जनवरी-दिसम्बर (संयुक्तांक) '2004

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