Book Title: Prakrit Vidya Samadhi Visheshank
Author(s): Kundkund Bharti Trust
Publisher: Kundkund Bharti Trust

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Page 139
________________ हिरे-आवलि में रामलिंग मन्दिर के सामने पड़े पत्थर पर अंकित लेख में कहा गया है- विक्रम चालुक्य के 49वें वर्ष {1124 ई.} की माघशुक्ल 5 बृहस्पतिवार को मूल संघ, सेनगण और पोगरिगच्छ के चन्द्रप्रभ सिद्धान्तदेव के शिष्य माधवसेन भट्टारक देव जिनचरणों का मनन करके, पंच परमेष्ठी का स्मरण करके समाधिमरण धारण कर स्वर्ग गए। चन्नदहल्लि में अमृतेश्वर मन्दिर के सामने के वीरगल के ऊपर 1133 ई. में उल्लिखित लेख के अनुसार मूलसंघ और देसिग गण के माघनन्दि भट्टारक देव के एक गृहस्थ शिष्य, गंगवल्लिय दास-गावुण्ड के पुत्र वोप्पय समाधि विधि से मरण कर स्वर्ग को गए। हेग्गरे की बसदि के एक शिलालेख के अनुसार शक 1085 {1163 ई.} में आषाढ़ शुक्ल 10 बुधवार को श्री मूलसंघ देशियगण, पुस्तकगच्छ और कौण्डकुन्दान्वय के माणिक्यनन्दि सिद्धान्तदेव के शिष्य मेघचन्द्र भट्टारक देव ने संन्यसन विधिपूर्वक स्वर्ग प्राप्त कर पुनर्जन्म से मुक्ति प्राप्त की। ____ हेरेकेरी में कुमार पण्डित की गृहस्थ शिष्या पेक्कन सेटि की पत्नी मल्लब्बे द्वारा जैनविधिपूर्वक किए गये समाधिमरण का वहाँ की बसदि के दक्षिण के समाधिपाषाण पर उल्लेख किया गया है। यह शिलालेख शक 1161 {1239 ई.) का है। इसी बसदि के उत्तर की ओर समाधि पाषाण पर शुभकीर्ति पण्डितदेव की शिष्या पेक्कम सेट्टि की पुत्री कामव्वे द्वारा समाधिग्रहण का उल्लेख है। यह शिलालेख शक 1165 {1243 ई.} का है। __ उद्धि के एक शिलालेख {E.C. VIII Sorab tINo. 42} में (जो कि वनशंकरी मन्दिर के एक पाषाण पर उत्कीर्ण है} | समाधिमरण धारण कर सुगति-प्राप्ति का उल्लेख है। हुम्मच में पद्मावती मन्दिर में प्रांगण में दूसरे पाषाण पर सोभय के पुत्र डे वेग्गडे के लिए समाधिमरण पूर्वक सुरलोक-प्राप्ति का उल्लेख है। यह शिलालेख शक 1170 {1248 ई.} का है। हुम्मच के पद्मावती मन्दिर में एक पाषाण पर शक 1172 {1250 ई.) के एक शिलालेख के अनुसार महामण्डलेश्वर ब्रह्म भूपाल के मन्त्री ब्रह्मय्य सेनबो के प्रिय पुत्र पार्श्व सेनबोव ने समाधि-विधि से स्वर्गलोक प्राप्त किया। चिक्क मागडि में बसदि के पास के पाषाण पर लगभग 1256 ई. का एक लेख है जिसके अनुसार यादव-नारायण भुजबल प्रताप चक्रवर्ती कन्दार देव के 11वें वर्ष में मुडिक़े सा... वन्त ने संन्यसन महोत्सव की विधि को करते हुए सुखी हालित प्राप्त की। प्राकृतविद्या जनवरी-दिसम्बर (संयुत्ता ) '2004 00 137

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