________________ मारसिंह गुत्तिय गंग सल्लेखना के लिए उल्लेखनीय हैं। मारसिंह ने सन् 961 से 974 ई. तक सफल शासन किया था। जैनधर्म की प्रभावना के लिए भी उन्होंने अनेक कार्य किये थे। जब उन्होंने अपने को शिथिलगात पाया तो एक वर्ष पहले से राजभार त्याग दिया था। वह एकान्तवास के लिए अपने गुरु अजितसेन भट्टारक के पास बांकापुर चले गये थे। वहाँ उन्होंने धर्माराधना की। अन्त समय में गुरु से सल्लेखना व्रत लिया और उन्हीं के पादमूल में तीन दिन तक आराधना करके समाधिमरण किया था। -(इपी. कर्णाटका, 2, 59, पृष्ठ 12-14) - इस घटना के 8-9 वर्ष पश्चात् राठौर नरेश इन्द्रराज ने भी सल्लेखना व्रत धारण किया था। वह पोलो खेलने में बड़े चतुर थे। सन् 982 ई. में वह श्रवणबेलगोल आए और मृत्यु को अवश्यम्भावी जानकर उन्होंने गुरु महाराज से सल्लेखना व्रत लिया। शिलालेख में लिखा है कि स्थिरचित्त होकर लोकप्रसिद्ध इन्द्रराज ने व्रतों का पालन किया और सुरेश (इन्द्र) के वैभव को प्राप्त किया। .. -(इपी. कर्णाटका, 2, 133, पृष्ठ 63) रानी-महारानियों का संल्लेखना व्रत __रानी-महारानियों में शान्तलदेवी, उनकी माता माचिकव्वे पामब्बे आदि उल्लेखनीय हैं। रानी पामब्बे गंगनरेश बुटुग की बहन थीं। पडियार दोरपप्य नरेश उनके पति थे। दुर्विपाकवश जब उन्हें वैधव्य का दुःख देखना पड़ा तो वह णाणब्बे नामक आर्यिका के पास पहुँची और केशलोंच करके आर्यिका के व्रत धारण किये। तीस वर्ष तक लगातार पंचव्रतों का पालन करके सन् 971 ई. में वह स्वर्गवासी हुईं। शिलालेख में लिखा है कि जब लोग उनको बुटुग नरेश की वहन मानकर आदर करते थे और पूछते थे कि वह कोई सेवाकार्य बतायें, तो वह कह देती थीं कि मुझे जो कुछ मिला था उसका मैंने त्याग कर दिया। अब मुझे कुछ नहीं चाहिए। -(इपी. कर्णाटिका 6, 1, पृष्ठ 1) इसके पहले सन् 911 ई. में राष्ट्रकूट-नरेश कृष्ण तृतीय के समय में वनवासी के अन्तर्गत नगरखण्ड के शासक नागार्जुन का अन्त हो गया तो उन्होंने उनकी विधवा पत्नी जक्कियब्बे को शासक नियुक्त किया था। उन्होंने बड़ी योग्यता से शासन किया था। अन्त समय में उनके शरीर को व्याधि ने घेर लिया तो जक्कियब्वे ने सोचा कि सांसारिक वैभव क्षणिक है और पुत्री को बुलाकर राजभार उसको सौंप दिया। स्वयं इच्छाओं को जीतकर सल्लेखना विधि से स्वर्गवास किया। __ -(इपी. कर्णा. 7. 219, पृष्ठ 130-131) . महारानी शान्तलदेवी होयसल नरेश विष्णुवर्द्धन की पट्टरानी थीं। वह एक आदर्श महिला थीं। जैनधर्म के लिए वह साक्षात् स्तम्भ थीं। लोग उन्हें सम्यक्त्व प्राकृतविद्या जनवरी-दिसम्बर (संयुक्तांक) '2004 00 129