________________ 12 : डॉ० अशोक कुमार सिंह अध्ययन चतुःशरण.[६३].(११) आतुरप्रत्याख्यान [71].(12) जिनशेखर श्रावक प्रति सुलसा श्रावक आराधित आराधना [74],(13) श्रीअभयदेवसूरि प्रणीत आराधना प्रकरण [85].(14) संस्तारक प्रकीर्णक[१२२],(१५) महाप्रत्याख्यान [142], . (16) भक्तपरिज्ञा [173], (17) आराधनासार अथवा पर्यन्ताराधना [263].(18) . आराधनापंचक [335],(19) मरणविभक्ति या मरणसमाधि [661], (20) प्राचीन आचार्य विरचित आराधनापताका [932] एवं(२१) वीरभद्राचार्य विरचित आराधनापताका [989] अब उक्त क्रम में इन प्रकीर्णकों की संक्षिप्त विषयवस्तु का परिचय प्रस्तुत है(१) आराधना कुलकर प्रकीर्णकों में सबसे लघु आराधनाकुलक में कुल आठ गाधायें हैं / आराधक द्वारा आराधना व्रत का उच्चारण करते हुए सभी जीवों से क्षमापना, अठारह पापस्थानों का त्याग, राग-द्वेष और मोहवश तीन करण और तीन योग से इस भव और पर भव में जो . धर्म विरुद्ध कृत्य हैं उनकी निन्दा (दुष्कृत निन्दा)५, सुकृत का अनुमोदन, चतुःशरणग्रहण, और एकत्वभावना का इसमें निर्देश मात्र है। (2) आलोचना कुलकर इस प्रकीर्णक में मात्र 12 गाथायें हैं / इसमें विविध दुष्कृतों की आलोचना की गई है। जिन कथित ज्ञान, दर्शन और चारित्र के अतिचारों की निन्दा, मूलगुण , उत्तरगुण के अतिचारों की निन्दा, राग-द्वेष और चारों कषायों के वशीभूत जो कृत्य हैं उनकी निन्दा, दर्प और प्रमाद से जो कृत्य किये गये उनकी निन्दा,५ अज्ञान, मिथ्यात्व, विमोह और कलुषता के कारण जो कृत्य किये गये उनकी निन्दा, जिन प्रवचन, साधु-की आशातना और अविनय की मन-वचन और काय से निन्दा है / आगे इन्द्रियों के वशीभूत होकर किये गये कार्यों की आलोचना एवं अन्तिम गाथा में आलोचना का माहात्म्य बताया गया है। (3) मिथ्यादुष्कृत कुलक ___'मिथ्यादुष्कृत कुलक' में आराधक द्वारा समस्त जीवों के प्रति क्षमापना की गई है। कुलक का प्रारम्भ मंगलाचरण से न होकर विषय से ही है। इसमें आरम्भिक दो गाथाओं में आराधक द्वारा क्रमशः सामान्य रूप से किसी भी प्राणी और नरकादि चारों गतियों के प्राणियों से क्षमापना की गई है। इसके पश्चात् चारों गतियों के समस्त जीवों से अलगअलग क्षमापना की गई है। पुनःपंचपरमेष्ठियों की निन्दा के लिए क्षमापना, दर्शन-ज्ञानचारित्र और सम्यक्त्व की विराधना हेतु निन्दा, चतुर्विध संघ की अवमानना, महाव्रतों और अणुव्रतों के प्रति जो स्खलना है उसकी निन्दा की गई है। इसके पश्चात पृथ्वीकायिक से लेकर त्रसपर्यन्त जीवों की क्षमापना, सभी आत्मीय जनों (सांसारिक दृष्टि से) के प्रति क्षमापना और मिथ्यादुष्कृतों की निन्दा की गई है / /