________________ समाधिमरणेतर प्रकीर्णकों की विषयवस्तु * डॉ० अशोक कुमार सिंह * डॉ० सुरेश सिसोदिया प्रकीर्णकों में प्रमुख प्रतिपाद्य समाधिमरण रहा है किन्तु कुछ प्रकीर्णक ऐसे भी हैं, जो खगोल, भूगोल, ज्योतिष, जैन इतिहास आदि से भी सम्बन्धित हैं / मुनि पुण्यविजयजी द्वारा पइण्णयसुत्ताइं भाग 1 एवं 2 में जो बत्तीस प्रकीर्णक संग्रहीत हैं, उनमें से इक्कीस प्रकीर्णक यथा-(१) मरणसमाधि, (2) आतुरप्रत्याख्यान, (3) महाप्रत्याख्यान, (4) संस्तारक, (5) चतुःशरण, (6) आतुरप्रत्याख्यान, (7) भक्तपरिज्ञा, (8) आतुरप्रत्याख्यान (वीरभद्राचार्य विरचित), (9) आराधनापताका (प्राचीन आचार्य विरचित), (10) आराधनापताका (वीरभद्राचार्य विरचित), (11) पर्यन्ताराधना, (12) आराधमापंचकम, (13) आतुरप्रत्याख्यान, (14) आराधनाप्रकरणम (15) जिनशेखर श्रावकप्रति सुलसा श्रावक कारापित आराधना (16) नन्दनमुनि आराधित आराधना, (17) आराधना कुलकम, (18) मिथ्या दुःकृत कुलकम् (19) मिथ्या दुःकृत कुलकम, (20) आलोचना कुलकम् और (21) आत्मविशोधि कुलकम प्रकीर्णक किसी न किसी रूप में समाधिमरण का ही विवेचन करते हैं / समाधिमरण विषयक इन इक्कीस प्रकीर्णकों की विषयवस्तु का विवेचन पूर्व आलेख समाधिमरण सम्बन्धी प्रकीर्णकों की विषयवस्तु' में प्रस्तुत किया जा चुका है / शेष ग्यारह प्रकीर्णक यथा (1) देवेन्द्रस्तव, (2) तन्दुलवैचारिक, (3) चन्द्रकवेध्यक. (4) गणिविद्या, (5) ऋषिभाषित, (6) द्वीपसागरप्रज्ञप्ति, (7) वीरस्तव, (8) गच्छाचार, (9) सारावली, (10) ज्योतिषकरण्डक और (11) तित्थोगाली पृथक-पृथक विषयों को आधार बनाकर रचे गये हैं / प्रस्तुत आलेख में इन ग्यारह प्रकीर्णकों की विषयवस्तु का क्रमशः विवेचन किया जा रहा है(१) देवेन्द्रस्तव स्थविर ऋषिपालितकृत देवेन्द्रस्तव में 311 गाथाएँ हैं / इसका निर्देश नन्दीसूत्र और पाक्षिकसूत्र में प्राप्त होता है / 2 पाक्षिक सूत्रवृत्ति में कहा गया है कि देवेन्द्रों का चमर, वैरोचन आदि का स्तवन, भवन, स्थिति आदि के स्वरूप का जहाँ वर्णन हो, वह देवेन्द्रस्तव है / प्रस्तुत ग्रन्थ में बत्तीस इन्द्रों का क्रमशः विस्तारपूर्वक विवेचन किया गया है / ग्रन्थ का प्रारम्भ तीर्थङ्कर ऋषभ से लेकर महावीर तक की स्तुति से किया गया है। तत्पश्चात् किसी श्रावक की पत्नी अपने पति से बत्तीस देवेन्द्रों के सन्दर्भ में प्रश्न पूछती है कि ये बत्तीस देवेन्द्र कौन हैं ? कहाँ रहते हैं ? उनके भवन कितने हैं ? और उनका स्वरूप क्या है ? प्रत्युत्तर में वह श्रावक भवनपतियों, वाणव्यंतरों ज्योतिष्कों, वैमानिकों एवं अन्त में सिद्धों का वर्णन करना प्रारम्भ करता है / सर्वप्रथम असुरकुमार, नागकुमार, सुवर्णकुमार, द्वीपकुमार,