________________ 80 : प्रो० के० आर० चन्द्र उपरोक्त सभी ग्रंथों में मध्यवर्ती 'क' का 'ग' (पावगं) मिलता है जो अर्धमागधी भाषा की एक लाक्षणिकता है / 'नमो' का प्रारंभिक 'न' भी प्राचीनता का लक्षण है / इसी प्रकार 'ज्ञ'-'न्न' भी भाषिक दृष्टि से प्राचीन है, जबकि 'ज्ञ'-'ण' तो महाराष्ट्री प्राकृत का रूपहोने से परवर्ती है / अरहओ' और अरहदो' रूपमूल अरहतो' से परवर्ती काल में निष्पत्र हुए हैं, अरहदो' शौरसेनी रूप है तो अरहमओ' महाराष्ट्री प्राकृत का रूप है। (3) महापच्चक्खाण पइण्णयं की गाथा-३ का पाठ इस प्रकार है :___ जं किंचि वि दुच्चरियं तमहं निंदामि सव्वभावेणं / सामाइयं च तिविहं करेमि सव्वं निरागारं / / नियमसार की गाथा 103 का पाठ इस प्रकार है: जं किंचि मे दुच्चरितं सव्वं तिविहेण वोसरे / सामाइयं तु तिविहं करेमि सव्वं णिरायारं / / मूलाचार की गाथा 39 का पाठ इस प्रकार है: जं किंचि में दुच्चरियं सव्वं तिविहेण वोसरे / सामाइयं च तिविहं करेमि सव्वं णिरायारं / / 1. छन्द की दृष्टि से विश्लेषण (अ) महापच्चक्खाण की गाथा में 8+ 11 और 8+ 9 वर्ण हैं, अनुष्टुप छन्द की दृष्टि से मात्राओं का नियमन भी त्रुटिपूर्ण है जबकि मात्रा छन्द की दृष्टि से यह गाथा-छन्द है (मात्राएँ 12+ 18 एवं 12+ 15 हैं और सभी मात्रा-गण सही हैं)। (ब) नियमसार की गाथा में 8+ ९एवं 8+ 9 वर्ण हैं परंतु अनुष्टुप छन्दकी दृष्टि से छन्दोभंग हो रहा है। मात्रा की दृष्टि से 14+14 एवं 12+15 मात्राएँ हैं और पहले पाद का दूसरा एवं तीसरा मात्रा-गण भी गलत है, अतः यह गाथा-छन्द भी नहीं है। (स) मूलाचार की गाथा में 8+ 9 एवं 8+ 9 वर्ण हैं परंतु अनुष्टुप छन्द की दृष्टि से मात्राओं का नियमन गलत है / उसी प्रकार मात्राओं की दृष्टि से इसमें 13+14 और 12 + 15 मात्राएँ हैं और पहले पाद का द्वितीय मात्रा-गण भी गलत है / अतः महापच्चक्खाण की गाथा ही छन्द ही दृष्टि से सही है / 2. भाषा की दृष्टि से विश्लेषण महापच्चक्खाण का 'निरागारं' पाठ भाषिक दष्टि से अन्य दो ग्रंथों के 'णिरायारं' पाठ से प्राचीन है। 3. अर्थ की दृष्टि से विश्लेषण अर्थ की दृष्टि से 'दुच्चरित्तं' तो हो सकता है लेकिन मेरा अपना (नियमसार के अनुसार) 'दुच्चरितं' क्या होगा, जिसे त्याग देना पड़े उसी प्रकार (मूलाचार के अनुसार)