________________ 190 : डॉ० सुभाष कोठारी किण्ह चउद्दसिरत्तिं सउणिं पडिवज्जए सया करणं / इत्तो अहक्कम खलु चउप्पयं नाग किंछुग्धं / / (उत्तराध्ययननियुक्ति, गाथा 199-200) 6i) . सउणि चउप्पयं नागं किसुग्धं च करणं भवे एयं / एते चत्तारि धुवा अन्ने करणा चला सत्ता / / चाउद्दसिरत्तीए सउणि पडिवज्जए सदा करणं / तत्तो अहक्कम खलु चउप्पयं णाग किसुग्धं / / (सूत्रकृतांगनियुक्ति, गाथा 12-13) 6. iii) सउणि चउप्पय नागं किसुग्धं च करणं सिरं चउहा / बहुल चउद्दसिरत्तिं सउणिं सेसं तियं कमसो || (विशेषावश्यकभाष्य, गाथा 3350) 66iv) बव-बालव-कौलव-तैत्तिल-गरजा-वणिजविष्टि-चरकरणाः / शकुनिचतुष्पदनागाः किंस्तुघ्नश्चेत्यमी स्थिराःकरणा / / कृष्णचतुर्दश्यपरार्धतो भवन्ति. स्थिराणी करणानि / शकुनिचतुष्पदनागाः किंस्तुघ्नः प्रतिपदाधर्धे / / . ___ (जैन ज्योतिर्ज्ञानविधि-श्रीधर) 64v) गोयमा, एक्कारस करणा पण्णत्ता-तंजहा-बवं, बालवं, कोलवं, धीविलोअणं, गराइ, वणिज्जं, विट्ठि, सउणी, चउप्पयं, नागं, कित्थुग्छ / (जंबूद्वीपप्रज्ञप्ति-मुनिमधुकर-पृ० 358) इस प्रकार हम देखते हैं कि गणिविद्या प्रकीर्णक में मूलतः ज्योतिष के नियमों से दीक्षा, सामायिक, व्रतस्थापना, उपदेश, अनुज्ञा, गणपद का आरोपण, पादोपगमन आदि कार्यों को तिथि, करण, नक्षत्र, मुहूर्त एवं योग से करने का वर्णन किया गया है / जहाँ अन्य ज्योतिष ग्रन्थों में विवाह, मकान निर्माण, पूजन व अन्य लौकिक कार्यों को करने के दिन, स्थान और समय निश्चित किये गये हैं वहीं गणिविद्या में लोकोत्तर कार्यों को करने के दिन, स्थान और समय निश्चित किये गये हैं।