________________ 226 : डॉ० रज्जन कुमार गर्भारोपण के बाद भ्रूण अपना आहार एक विशेष प्रकार से निर्मित अंग अपरा (Placenta) की सहायता से लेता रहता है / अपरा भ्रूण के विकास के साथ बढ़ता जाता है तथा गर्भाशय के अंतःपृष्ठ का लगभग एक तिहाई भाग ढंक लेता है / इसके द्वारा ही माता के रक्त से भ्रूण का पोषण होता है / अपरा में उँगली जैसे उभार उत्पन्न होकर झिल्ली में फैले रहते हैं / अपरा का उभार गर्भाशय की दीवार की रक्त-कोशिकाओं के साथ होता है लेकिन इससे मिला हुआ नहीं होता / दोनों के बीच अत्यंत बारीक कला(Membrane) रहती है, जिसके द्वारा पोषक पदार्थ तथा आक्सीजन माता के रक्त से भ्रूण में तथा भ्रूण . की त्याज्य वस्तुएँ माता के रक्त में जाती हैं / 11 अपरा और गर्भ के बीच एक रज्जु सदृश संरचना होती है, जिसे नाभिरज्जु या नाभिनाल (Umibilicalcord) कहते हैं। नाभिनाल का एक छोर भ्रूण की नाभि से और दूसरा अपरा के मध्य भाग से जुड़ा रहता है / इस रज्जु में धमनी तथा शिरा (Veins) रहती है / धमनी Arteries) द्वारा माता का शुद्ध रक्त भ्रूण को मिलता है और भ्रूण का दूषित रक्त गर्भनाल की शिरा को मिलता है / 12 . __ भ्रूण ही गर्भ में शिशु का रूप धारण कर लेता है और एक निश्चित समयावधि के बाद योनिद्वार से बाहर निकल आता है / लेकिन भ्रूण को एक विकसित शिशु बनने में कई प्रकार की प्रक्रियाओं से गुजरना पड़ता है / मानव भ्रूण जो एक समय में केवल एक कोशिका का होता है यही विकसित होकर पूर्ण काल-प्राप्त (बहुकोशिकीय शिशु) गर्भ बन जाता है। भ्रूण का यह विकास तीन प्रक्रियाओं के कारण होता है / 13 1. कोशिकाओं की संख्या में वृद्धि २.कोशिकाओं की आकार वृद्धि और 3. अंतरकोशिकीय पदार्थ की मात्रा में वृद्धि। संषेचन होने के उपरांत तथा जरायु बनने पश्चात् कोशिका समूह में विभक्त होने लगता है। कोशिकाओं में दो कोष बन जाते हैं, जिन्हें उल्व-कोष (AminionSac) और पीतककोष (Yolk Sac) कहते हैं / ये दोनों कोष एक स्थान पर एक -दूसरे के सम्पर्क में रहते हैं / ये दोनों मिलकर गर्भोदयक थैली बनाते हैं, जिसमें उल्वकोष तरल रहता है सगर्भता के प्रथम तीन सप्ताह के बाद भ्रूण केवल एक दियासलाई के सिर के बराबर रहता है, जिसमें रक्त स्वयं बनता है / निषेचित डिम्ब पहले गोल होता है, किन्तु जैसे-जैसे विकास होता जाता है और गर्भकाल पूरा होता जाता है, वैसे-वैसे इसकी आकृति और रूप में परिवर्तन होते जाते हैं / छह सप्ताह के बाद ही माता यह बता सकती है कि वह गर्भवती है या नहीं। इस समय ही भ्रूण के सिर का निर्माण होता है / 14 इसके बाद मुँह तथा हाथपैर का निर्माण होता है / दूसरे माह में विकास कर रहे भ्रूण की लंबाई एक इंच के लगभग होती है / इस समय जरायु माता के रक्त से सीधे संपर्क में आ जाते हैं / अंकुर में विकास होने से ऊपरी सतह बढ़ जाती है / इस समय से उल्वकोष में विकास होने लगता है और यह गर्भाशय गुहा तक फैल जाता है उल्वकोष का तरल पदार्थ भी बढने लगता है और भ्रूण नाभिनाल के साथ उस तरल पदार्थ में इधर-उधर भ्रमण करने लगता है। तीसरे माह के अंत तक भ्रूण के सभी अंग प्रायः बन जाते हैं / शरीर से सिर का आकार बड़ा हो जाता है तथा चेहरा बन जाता है / माता का गर्भाशय ऊपर से ऊँचा दिखाई पड़ने लगता है / चौथे माह तक भ्रूण की पेशी में विकास होने लगता है / पाँचवें माह के मध्य तक भ्रूण के सिर के बाल निकल आते हैं / 15 सातवें माह के अंत तक भ्रूण में पूर्ण विकास हो जाता है।