Book Title: Prakirnak Sahitya Manan aur Mimansa
Author(s): Sagarmal Jain, Suresh Sisodiya
Publisher: Agam Ahimsa Samta Evam Prakrit Samsthan

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Page 236
________________ तंदलवैचारिक प्रकीर्णक और आधुनिक जीव विज्ञान : एक तुलना * डॉ० रज्जन कुमार जैन परम्परा अपने विशाल साहित्य के लिए विश्व विख्यात है। जैन साहित्य मूलतः अंग और अंगबाह्य के रूप में बँटा हुआ है / प्रकीर्णकों का स्थान अंगबाह्य के अंतर्गत आता है / इनमें विविध विषयों का समावेश किया गया है / जैन विचारणा में ऐसी मान्यता रही है कि तीर्थंकरों द्वारा उपदिष्ट श्रुत का अनुसरण करके श्रमण वर्ग प्रकीर्णकों की रचना करते थे। परम्परानुसार यह भी मान्यता है कि प्रत्येक श्रमण एक-एक प्रकीर्णक की रचना करते थे। इस प्रकार प्रकीर्णक साहित्य की एक विशाल संख्या होनी चाहिए, भगवान ऋषभदेव के चौरासी हजार शिष्यों के चौरासी हजार प्रकीर्णक रहे होंगे। इसी तरह अंतिम तीर्थकर महावीर के 14000 शिष्यों के भी 14000 प्रकीर्णक होने चाहिए, परंतु इतनी अधिक संख्या में प्रकीर्णक उपलब्ध नहीं हैं / वर्तमान में कुल दस प्रकीर्णक मान्य हैं जिनमें तंदुलवैचारिक़ भी एक है / यह एक गद्यपद्य मिश्रित रचना है / इसमें गर्भविषयक अवधारणा का विस्तार से विवेचन किया गया है / प्रस्तुत लेख में इसी विषय पर आधुनिक जीव विज्ञान की दृष्टि से विचार करने का प्रयास किया जा रहा है। ___ गर्भविषयक तथ्य को समझने के लिए हमें आधुनिक जीव विज्ञान में प्रतिपादित नर-मादा जननांग, भ्रूण-उत्पत्ति, भ्रूण-विकास तथा शिशु-जन्म की प्रक्रिया को संक्षेप में समझना होगा। नर जननांग के निम्नलिखित भाग होते हैं वृषण (Testes), शुक्राशय 'Seminal vesicle), अधिवृषण (Epididymis),शुक्रवाहिका (Vas deferens), पुरस्थ ग्रन्थि Prostate gland), वृषण कोष Scrotum) तथा शिश्न (Penis) | पुरुष में दो वृषण पाए जाते हैं, जो वृषणकोष में बंद रहते हैं / इनमें शुक्राणुओं का निर्माण होता है / अधिवृषण एक कुंडलित संकरी नली है / इसी नलिका के माध्यम से शुक्राणु वृषण से शुक्रवाहिका में आते हैं। शुक्रवाहिका में से शुक्रवाहिनी नलियाँ निकलती हैं जो शुक्राशय में जाकर खुलती हैं / शुक्राशय से दो छोटी नलिकाएँ मूत्राशय के कुछ नीचे खुलती हैं / इन्हीं नलिकाओं के माध्यम से शुक्र मूत्रमार्ग से होकर बाहर निकलता है / मूत्र शिश्न के द्वारा बाहर निकलता है तथा शुक्र भी इसी के द्वारा बाहर निकलता है। तंदुलवैचारिक में हमें वृषण (वसण)१, शुक्राशय (शुक्रधारणिशिरा), शिश्न तथा शुक्र का विवरण मिलता है / नारी जननांग बाह्य और अंतरंग दो भागों में बाँटा गया है / सभी बाह्य अंगों को सम्मिलित रुप से भग' (Valve) कहते हैं / इसमें निम्नलिखित अंग सम्मिलित रहते हैं१. रतिशेल Mons Veneris)-यह एक गद्देदार संरचना है जो जांघों के जोड़ के

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