Book Title: Prakirnak Sahitya Manan aur Mimansa
Author(s): Sagarmal Jain, Suresh Sisodiya
Publisher: Agam Ahimsa Samta Evam Prakrit Samsthan

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Page 246
________________ 234 : पं० कन्हैयालाल दक है, तत्पश्चात गाथा 527 से 561 तक तीर्थङ्करों के सिद्भिगमन के समय में कौन से आसन थे तथा किस तपस्या के साथ उन्होंने मोक्ष को प्राप्त किया ? इसकी मार्मिक विवेचना है। . इससे स्पष्ट तौर पर यह ध्वनित होता है कि मोक्ष को प्राप्त करने तक भी तपस्या आवश्यक . ही नहीं अत्यन्त आवश्यक है। इसके पश्चात चौबीस तीर्थङ्करों के माता-पिताओं की गतियों का वर्णन किया गया है (गाथा 567-568) / आगे बारह चक्रवर्तियों के नाम, समय तथा गतियों का वर्णन किया गया है, जिनमें आठ चक्रवर्ती मोक्ष में गये हैं, ऐसा संकेत है (गाथा 569-576) / तत्पश्चात् वासुदेव तथा बलदेवों के नाम, उनकी ऋद्धि तथा माता-पिताओं के नाम, उनके पूर्वभवों के नाम, पूर्वभव के धर्मगुरुओं के नाम एवं नगरियों का वर्णन किया गया है (गाथा 602-609) / ग्रन्थ में 9 प्रतिवासुदेवों के नामों का भी उल्लेख हुआ है (गाथा 610) / जिस रात्रि में अन्तिम तीर्थकर महावीर निर्वाण को प्राप्त हुए, उसी रात्रि में पालक राजा का राज्याभिषेक हुआ, इस प्रसंग को लेकर गाथा ६२०से 627 तक पालक, मरूक, पुष्यमित्र, बलमित्र, भानुमित्र, नभसेन, गर्दभ आदि राजाओं के राज्यकाल का तथा दुष्टबुद्धि नामक राजा के जन्म का वर्णन किया गया है / कल्कि के पुत्र दत्त के राज्याभिषेक का वर्णन, नन्दीसूत्र की भांति संघ की स्तुति तथा दत्त की वंश-परम्परा का वर्णन है (गाथा 690-697) / ग्रन्थ में यह भी कहा गया है कि भगवान महावीर के निर्वाण प्राप्ति को 64 वर्ष हो जाने के पश्चात् अन्तिम तीन चारित्र, मनःपर्ययज्ञान, परमावधिज्ञान तथा पुलाकलब्धि भी एक साथ तित्थोगाली' के निर्देशानुसार विच्छिन्न हो जाएगें / (गाथा 698-700) / ग्रन्थ में उल्लेख है कि भगवान महावीर के निर्वाण के 170 वर्ष पश्चात स्थूलभद्र नामक आचार्य के बादं चौदह-पूर्वो का भी विच्छेद हो जाएगा (गाथा 710) / इस प्रकीर्णक में कल्कि राजा का जो समय दिया गया है वह भी आगम शोधक विद्वानों, विशेषकर आगम प्रभाकर मुनि पुण्यविजयजी की दृष्टि में असंगत है / ग्रन्थ की गाथा 708 से 806 तक महावीर से लेकर भद्रबाहु स्वामी तथा स्थूलभद्र नामक आचार्य की पट्ट-परम्परा का उल्लेख है, जिसमें उस कथानक का भी उल्लेख है कि स्थूलभद्र की सात बहनें जो ज्ञान व चारित्र से सम्पत्र हैं, स्थूलभद्र के दर्शन के लिये आती हैं तब स्थूलभद्र मुनि श्रुतऋद्धि' का प्रदर्शन करते हैं, वे सिंह का रूप धारण करते हैं, इससे बहनें भयभीत हो जाती हैं / स्थूलभद्र के गुरु भद्रबाहुस्वामी उन्हें प्रायश्चित देते हैं, लेकिन उसके बाद पूर्वो का ज्ञान नष्ट हो जाता है / इस एक अपराध के लिये सब मुनिगण क्षमायाचना करते हैं, लेकिन गुरु भद्रबाहुस्वामी कोशा नामक वेश्या का पूरा कथानक कहकर 'ऋद्भिगारव' का सेवन करने से श्रुतज्ञान का नाश तथा चार पूर्वो का ज्ञान नष्ट होने का रहस्य समझाते हैं / गाथा 807 से 836 में श्रुतज्ञान का क्रम से विच्छेद होने की प्ररूपणा की गई है / कब, किस शास्त्र ज्ञान का विच्छेद होगा, इसका बहुत सुन्दर वर्णन इस ग्रन्थ में उपलब्ध होता है / ग्रन्थ में आचार-धर्म के नष्ट होने का भी संकेत किया गया

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