________________ 186 : डॉ. सुभाष कोठारी वाले, तिर्यञ्च नाम वाले शकुनों में कौन-कौनसे कार्य करने चाहिये एवं कौन-कौनसे कार्य नहीं करने चाहिये, इसका वर्णन किया गया है / 11 8. लग्नबलद्वार लग्न का अर्थ है-होराशास्त्र / यहाँ अस्थिर राशियों वाले, स्थिर राशियों वाले, एकावतारी लग्नों, सूर्य होरा लग्नों, सौम्य एवं क्रूर ग्रह वाले लग्नों, राहू एवं केतु वाले लग्नों, प्रशस्त एवं अप्रशस्त लग्नों में करने एवं न करने वाले कार्यों का उल्लेख प्राप्त होता है / 12 9. निमित्तबलद्वार शुभाशुभ कार्यों हेतु निमित्त भी एक पक्ष माना जाता है और ये भविष्य की कार्य सिद्धि में सहायक होते हैं / ये निमित्त उत्पाद लक्षण वाले होते हैं जिनसे भूत, भविष्य का ज्ञान किया जाता है / यहाँ पुरूष नाम वाले, स्त्री नाम वाले एवं नपुंसक नाम वाले निमित्तों का वर्णन करते हुए कहा गया है कि प्रशस्त निमित्तों में कार्य प्रारम्भ किया जाना चाहिये एवं अप्रशस्त निमित्तों में समस्त कार्यों का त्याग करना चाहिये / 13 ___ ग्रन्थ की अंतिम गाथाओं में कहा गया है कि दिवसों से तिथि, तिथियों से नक्षत्र, नक्षत्रों से करण, करणों से ग्रह, ग्रहों से मुहूर्त, मुहूर्तों से शकुन, शकुनों से लग्न और लग्नों : से निमित्त बलवान होते हैं / 14 ग्रन्थ के अध्ययन एवं अनुवाद से यह प्रतिफलित होता है कि दैनिक जीवन व्यवहार, अध्ययन, शुभाशुभकार्य, दीक्षा एवं अनशन आदि ज्योतिष ग्रह नक्षत्रों के अनुसार ही करने चाहिए, परन्तु यह ग्रन्धकार का अपना एक पहलू है अन्यथा कई परम्पराएँ एवं समाज व्यवस्थाएँ इन सब पर आस्थाएँ नहीं रखती हैं। हमारा उद्देश्य तो सिर्फ पुस्तक में प्रतिपादित सत्य को उद्घाटित करना है / गणिविद्या प्रकीर्णक की गाथाओं की समानता किन-किन प्राचीन ज्योतिष विषयक ग्रन्थों, जैनागमों आदि में प्राप्त होती है उनका विवेचन करने के पूर्व इस ग्रन्थ में वर्णित 9 द्वारों का जैनागमों एवं अन्य ज्योतिष विषयक ग्रन्थों में क्या विवेचन प्राप्त होता है, उस पर एक दृष्टि डाल लेना उपयोगी होगा। 1. दिवसद्वार का वर्णन जंबूद्वीप्रज्ञप्ति में विस्तार से किया गया है / वहाँ प्रत्येक महिने के दो पक्ष एवं तीस दिन बतलाये गये हैं / प्रत्येक पक्ष के 15-15 दिन और 15 - 15 रात्रियाँ बतलायी गई हैं। 15 दिवसों के पूर्वांग, सिद्भमनोरम एवं 15 रात्रियों के उत्तमा, सुनक्षत्रा, देवानन्दा आदि 15 नाम बतलाये गये हैं / 15 दिवस के बारे में यही विस्तार तिलोयपण्णत्ति,१६ धवला१७ में भी प्राप्त होता है / २.तिथिद्वार में प्रतिपदा आदि तिथियों का उल्लेख प्राचीन शास्त्रों में उनके फलाफल सहित प्राप्त होता है / जंबूद्वीपप्रज्ञप्ति-व्रततिथिनिर्णय९ आरंभसिद्भिरे ज्योतिश्चन्द्रार्कर 1 में 15 तिथियों, उनकी संज्ञाओं एवं विभित्र तिथियों पर कार्य करने और विभित्र तिथियों पर कार्य नहीं करने का संकेत किया गया है / यहाँ यह कहा गया है कि प्रतिपदा सिद्धि देने वाली, द्वितीया कार्य साधने वाली, तृतीया आरोग्य करने वाली, चतुर्थी हानिकारक, पंचमी