________________ 114 : डॉ० श्रीप्रकाश पाण्डेय से नन्दी और पाक्षिक के उत्कालिकसूत्रों के वर्ग में देवेन्द्रस्तव, तन्दुलवैचारिक, चन्द्रावेध्यक, गणिविद्या, मरणविभक्ति, मरणसमाधि और महाप्रत्याख्यान ये सात नाम पाये जाते हैं / कालिकसूत्रों के वर्ग में ऋषिभाषित और द्वीपसागरप्रज्ञप्ति ये दो नाम पाये जाते हैं / इस प्रकार नन्दी एवं पाक्षिकसूत्र में नौ प्रकीर्णकों का ही उल्लेख मिलता है / 11 यद्यपि प्रकीर्णकों का आगम की श्रृंखला में द्वितीय स्थान है। किन्तु यदि हम भाषागत प्राचीनता और आध्यात्मप्रधान विषयवस्तु की दृष्टि से विचार करें तो प्रकीर्णक आगमों की अपेक्षा भी महत्त्वपूर्ण प्रतीत होते हैं / ऋषिभाषित आदि प्रकीर्णक तो उत्तराध्ययन और दशवैकालिक जैसे प्राचीन आगमों की अपेक्षा भी प्रचीन हैं / 12 उपरोक्त 22 प्रकीर्णकों१३ की गाथाओं को हमने शौरसेनी आगम साहित्य के जिन ग्रंथों में खोजने का प्रयास किया है, उनमें मुख्य हैं-षट्खण्डागम, धवला, वट्टकेर कृत मूलाचार, यतिवृषभ कृत तिलोयपण्णत्ति, शिवार्य अथवा शिवकोटि कृत भगवती आराधना, नेमिचन्द सिद्धान्त चक्रवर्ती कृत गोम्मटसार और त्रिलोकसार, आचार्य कुन्दकुन्द कृत पंचास्तिकाय, समयसार, प्रवचनसार, नियमसार, रयणसार, अष्टपाहुड-दंसणपाहुड, चरित्तपाहुड, सुत्तपाहुड, बोधपाहुड, भावपाहुड, मोक्खपाहुड, लिंगपाहुड, शीलपाहुड और बारस अणुवेक्खा। आचार्य गुणधर कृत कषायप्राभृत, स्वामी कार्तिकेय कृत कार्तिकेयानुपेक्षा, राजा चामुण्डराय के निमित्त रचित लब्धिसार, क्षपणासार, श्रुतमुनि कृत भावत्रिभंगी, आस्रवत्रिभंगी आदि / इनमें से प्रकीर्णकों की गाथाएँ हमें सभी ग्रंथों में प्राप्त नही हुई हैं, जो मिली हैं, उनके क्रम इस प्रकार हैं-भगवती आराधना में प्रकीर्णकों की सबसे अधिक 174 गाथाएँ मिलती हैं / महाप्रत्याख्यान की 34 गाथाएँ मूलाचार में और 12 गाथाएँ भगवतीआराधना में मिलती हैं। देवेन्द्रस्तव की मूलाचार में 1, तिलोयपण्णत्ति में 1, चन्द्रावेध्यक की मूलाचार में 7, भगवतीआराधना में 6, सूत्तपाहुड में 2, नियमसार में 1 और भावपाहुड में 1 गाथा मिलती है / संथारग की मूलाचार में 1 और भगवतीआराधना में 1, भक्तपरिज्ञा की भगवतीआराधना में 13 और मूलाचार में 1 गाथा मिलती है / आतुरप्रत्याख्यान की भगवती आराधना में 6 और मूलाचार में 7 गाथाएँ मिलती हैं / गच्छाचार प्रकीर्णक की भगवतीआराधना में 4 गाथाएँ मिलती हैं / ज्योतिषकरण्ड की तिलोयपण्णत्ति में 5 गाथाएँ, तित्थोगाली की मूलाचार में 1 एवं तिलोयपण्णत्ति में 1 गाथा मिलती है / आराधनापताका (पाईणायरीय कृत) की भगवतीआराधना में 26 गाथाएँ, मूलाचार में 5 और रयणसार में 1 गाथा मिलती है / आराधनापताका (वीरभदायरिय कृत) की भगवतीआराधना में 107 गाथाएँ और दर्शनप्राभृत में 1, तिलोयपण्णत्ति में 1 एवं मूलाचार में 9 गाथाएँ मिलती हैं। इस प्रकार बारह प्रकीर्णकों की कुल 276 गाथाएँ शौरसेनी आगम साहित्य में मिलती हैं। ये गाथाएँ शौरसेनी और अर्धमागधी भाषाई रूपान्तरण को छोड़कर अधिकांश यथावत रूप में स्वीकार कर ली गई हैं / यद्यपि इस आधार पर यह निश्चित कर पाना तो कठिन है कि ये सभी गाथाएँ प्रकीर्णकों से शौरसेनी आगम साहित्य में गई हैं या शौरसेनी