________________ 178 : डॉ० सुरेश सिसोदिया us सन्दर्भ-सूची (क) नन्दीसूत्र-सम्पा० मुनि मधुकर, प्रका० श्री आगम प्रकाशन समिति, ब्यावर; ई० सन् 1982, पृष्ठ 161-162 / (ख) पाक्षिकसूत्र - प्रका० देवचन्द्र लालभाई जैन पुस्तकोद्धार, पृष्ठ 76 / देविंदत्वयं-तंदुलवेयालिय-मरणसमाहि-महापच्चक्खाण-आउरपच्चक्खाण -संथारय-चंदाविज्झय-चउसरण-वीरत्थय-गणिविज्जा-दीवसागरपण्णत्तिसंगहणी-गच्छायारं-इच्चाइपइण्णगाणि इक्किक्केण निविएण वच्चंति / -विधिमार्गप्रपा, सम्पा० जिनविजय, पृष्ठ 57-58 .. वही, पृष्ठ 58 / समवायांगसूत्र-सम्पा० मुनि मधुकर, प्रका० श्री आगम प्रकाशन समितिब्यावर, प्रथम संस्करण 1982, 84 वां समवाय, पृष्ठ 143 / / (क) प्राकृत भाषा और साहित्य का आलोचनात्मक इतिहास, -डा० कैलाश चन्द्र शास्त्री, पृ० 197 (ख) जैन आगम साहित्य मनन और मीमांसा, -देवेन्द्रमुनि शास्त्री; पृष्ठ 388 / (ग) आगम और त्रिपिटक : एक अनुशीलन, - मुनि नगराज, पृष्ठ 486 / पइण्णयसुत्ताइं-सम्पा० मुनि पुण्यविजय, प्रका० श्री महावीर जैन विद्यालय, बम्बई; भाग 1, प्रथम संस्करण 1984, प्रस्तावना पृष्ठ 20 अभिधान राजेन्द्र कोश, भाग 2, पृष्ठ 41 पइण्णयसुत्ताई, भाग 1, प्रस्तावना पृष्ठ 18 / वन्दे मरणसमाधिं प्रत्याख्यान 'महा'-ऽऽतुरोपपदे / संस्तारक-चन्द्रवेध्यक-भक्तपरिज्ञा-चतुःशरणम् .||32 / / वीरस्तव-देवेन्द्रस्तव-गच्छाचारमपि च गणिविद्याम् / द्वीपाब्धिप्रज्ञप्तिं तण्डुलवैतालिकं च नमुः / / 33 / / / -उद्धृत-H.R.Kapadia, The Canonical Literature of the Jainas, p. 51. समवायांगसूत्र-सम्पा० मुनि मधुकर, प्रका० श्री आगम प्रकाशन समिति,ब्यावर; प्रथम संस्करण, ई० सन् 1981, सूत्र 9/29 / कल्पसूत्र, अनु० आर्या सज्जनश्रीजी म०, प्रका० श्री जैन साहित्य समिति, कलकत्ता; पत्र 334-345 / / (क) जैन शिलालेख संग्रह, भाग 2, लेख क्रमांक 143 (ख) प्रतिष्ठा लेख संग्रह, लेख क्रमांक, 34,38,39,133,833 "संवत् 1011 वृहद्गच्छीय श्री परमानन्दसूरि शिष्य श्री यक्षदेवसूरिभिः प्रतिष्ठितं" -लोढ़ा दौलत सिंह : श्री जैन प्रतिमा लेख संग्रह, लेख क्रमांक 331 जह सागरम्मि मीणा संखोहं सागरस्स असहंता / निति तओ सहकामी निग्गयमित्ता विनस्संति / / ; 10. 14.