________________ गच्छाचार ( प्रकीर्णक ) का समीक्षात्मक अध्ययन : 167 गच्छाचार प्रकीर्णक गच्छाचार प्रकीर्णक प्राकृत भाषा में निबद्ध एक पद्यात्मक रचना है / 'गच्छाचार' शब्द 'गच्छ' और आचार'-इन दो शब्दों से मिलकर बना है / प्रस्तुत प्रकीर्णक के संबंध में विचार करने के लिए हमें गच्छ' शब्द के इतिहास पर भी कुछ विचार करना होगा / यद्यपि वर्तमान काल में जैन सम्प्रदायों के मुनि संघों का वर्गीकरण गच्छों के आधार पर होता है जैसे-खरतरगच्छ, तपागच्छ, पायचन्दगच्छ आदि / किन्तु गच्छों के रूप में वर्गीकरण की यह शैली अति प्राचीन नहीं है / प्राचीनकाल में हमें निर्ग्रन्थसंघों के विभिन्न गणों में विभाजित होने की सूचना मिलती है। समवायांगसूत्र में महावीर के मुनि संघ के निम्न नौ गणों का उल्लेख मिलता है-(१) गोदासगण, (2) उत्तरबलिस्सहगण, (3) उद्देहगण, (4) चारणगण, (5) उद्दकाइयगण, (6) विस्सवाइयगण, (7) कामर्धिकगण, (8) मानवगण और (9) कोटिकगण। कल्पसूत्र स्थविरावली में इन गणों का उल्लेख ही नहीं है वरन ये गण आगे चलकर शाखाओं एवं कुलों आदि में किसप्रकार विभक्त हुए, यह भी उल्लिखित है 11 / कल्पसूत्र स्थविरावली के अनुसार आर्य यशोभद्र के शिष्य आर्य भद्रबाहु के चार शिष्य हुए, उनमें से आर्य गोदास से गोदासगण निकला / उस गोदासगण की चार शाखाएँ हुई-(१) ताम्रलिप्तिका, (2) कोटिवर्षिका, (3) पौण्ड्रवर्द्धनिका और (4) दासी खर्बटिका / आर्य यशोभद्र के दूसरे शिष्य सम्भूतिविजय के बारह शिष्य हुए, उनमें से आर्य स्थूलिभद्र के दो शिष्य हुए-(१) आर्य महागिरि और (2) आर्य सुहस्ति / आर्य महागिरि के स्थविर उत्तरबलिस्सह आदि आठ शिष्य हुए, इनमें स्थविर उत्तरबलिस्सह से उत्तरबलिस्सहगण निकला / इस उत्तरबलिस्सह गण की भी चार शाखाएँ हुईं-(१) कोशाम्बिका, (2) सूक्तमुक्तिका, (3) कौटुम्बिका और (4) चन्द्रनागरी / __आर्य सुहस्ति के आर्य रोहण आदि बारह शिष्य हुए, उनमें काश्यपगोत्रीय आर्य रोहण से 'उद्देह' नामक गण हुआ / उस गण की भी चार शाखाएँ हुई-(१) औदुम्बरिका, (2) मासपूरिका, (3) मतिपत्रिका और (4) पूर्णपत्रिका | उद्देहगण की उपरोक्त चार शाखाओं के अतिरिक्त छः कुल भी हुए-(१) नागभूतिक, (2) सोमभूतिक, (3) आर्द्र, (4) हस्तलीय, (5) नन्दीय और (6) पारिहासिक / - आर्य सुहस्ति के एक शिष्य स्थविर श्रीगुप्त से चारणगण निकला / चारणगण की चार शाखाएँ हुई-(१) हरितमालाकारी, (2) शंकाशिया, (3) गवेधुका और (4) वज्रनागरी / चारणगण की चार शाखाओं के अतिरिक्त सात कुल भी हुए-(१) वस्त्रालय, (2) प्रीतिधार्मिक, (3) हालीय, (4) पुष्पमैत्रीय, (5) मालीय, (6) आर्य चेटक और (7) कृष्णसह / आर्य सुहस्ति के ही अन्य शिष्य स्थविर भद्रयश से उडुवाटिकगण निकला, उसकी चार शाखाएँ हुई-(१) चम्पिका, (2) भद्रिका, (3) काकंदिका, (4) और मेखलिका /