________________ प्रकीर्णक और शौरसेनी आगम साहित्य : 115 प्राकृत साहित्य से प्रकीर्णकों में आई हैं, परन्तु इतना तो निश्चित है कि जिन नौ प्रकीर्णकों के उल्लेख नन्दी और पाक्षिकसूत्र में मिलते हैं उनकी रचना पाँचवीं शताब्दी से पूर्व तो हो चुकी थी / क्योंकि नन्दीसूत्र की चूर्णि का काल ६-७वीं शताब्दी माना जाता है / अतः नन्दीसूत्र पाँचवीं शती का ही है / आराधनापताका (वीरभद्राचार्य १०वी ११वीं शती) आदि प्रकीर्णक जो निश्चितरूप से बाद के हैं, उनमें ये गाथाएँ अन्य प्रकीर्णकों अथवा भगवती आराधना से ली गई हों, यह सम्भव है। वीरभद्राचार्य विरचित आराधनापताका की भगवतीआराधना में 107 गाथाओं का मिलना इसी बात का प्रमाण है / मूलाचार में विभिन्न प्रकीर्णकों की 76 गाथाएँ मिलती हैं / इन दोनों ही ग्रंथों में गाथाएं प्रकीर्णकों से ली गई हैं, यह इन ग्रंथों की विषयवस्तु को देखकर स्पष्ट हो जाता है / इन दोनों ग्रंथों में गुणस्थान की स्पष्ट चर्चा की गई है जो इस बात का प्रमाण है / गुणस्थान सिद्धांत ५वीं शती में आया है। अतः ये ग्रंथ ६ठीं शताब्दी के लगभग की रचनाएँ हैं / यदि ये दोनों ग्रंथ इनके पूर्ववर्ती होते, जैसा कि दिगम्बर सम्प्रदाय के कुछ विद्वान मानते हैं, तो तीसरी-चौथी शती के आचार्य उमास्वाति जो अपने तत्त्वार्थसूत्र में जैन धर्म और दर्शन के लगभग हर विषयों पर प्रकाश डाले हैं, गुणस्थान की चर्चा भी अवश्य ही किए होते / तत्त्वार्थ में गुणस्थान की स्पष्ट चर्चा का न मिलना इसी बात का प्रमाण है / गुणस्थान की चर्चा करने वाले सभी ग्रन्थ चौथी शती के बाद ही कभी निर्मित हुए हैं। प्रकीर्णकों की अनेक गाथाएँ कुन्दकुन्द रचित ग्रन्थों में मिलती हैं। महाप्रत्याख्यान की दस गाथाएँ कुन्दकुन्द के विभिन्न ग्रंथों मे मिलती हैं। जिसमें प्रवचनसार में 1, नियमसार में ८और समयसार में 1 गाथा मिलती है / अन्य प्रकीर्णकों से नौ और गाथाएँ कुन्दकुन्द के अन्य ग्रंथों में मिलती हैं / स्पष्ट है कि ये गाथाएँ कुन्दकुन्द ने प्रकीर्णकों से अपनी रचनाओं में ली हैं / क्योंकि प्रकीर्णकों का समय (जिन प्रकीर्णकों का नन्दी और इसकी चूर्णि में उल्लेख मिलता है) पाँचवीं शताब्दी के आसपास का है और कुन्दकुन्द के सम्बन्ध में यह अनेक प्रमाणों से सिद्ध हो चुका है कि कुन्दकुन्द छठीं शताब्दी के पूर्व के आचार्य नहीं हैं / कुन्दकुन्द को प्रथम शताब्दी का सिद्ध करने वाला मर्कराअभिलेख विद्वानों द्वारा जाली सिद्ध हो चुका है / 14 वैसे भी साहित्यिक साक्ष्य को लें तो अमृतचन्द्राचार्य (१०वीं शताब्दी) के पहले कुन्दकुन्द और उनके अन्वय का कहीं भी कोई उल्लेख नहीं मिलता / इस आधार पर यह कहा जा सकता है कि प्रकीर्णकों से गाथाएँ कुन्दकुन्द के साहित्य में गई हैं। हमारा यह अध्ययन कम्प्यूटर पर आधारित है, सम्भव है कि पाठान्तर भेद के कारण कतिपय गाथाएँ छूट गयी हों, किन्तु इस बात से इन्कार नहीं किया जा सकता की जिस प्रकार शौरसेनी का मूल अर्द्धमागधी है, यह मानने में कोई बाधा नहीं है / उसी प्रकार यह मानने में भी कोई बाधा नहीं है कि प्रकीर्णकों से ही प्रचुर मात्रा में गाथाएँ शौरसेनी आगम साहित्य में ली गई हैं।