________________ 88 : डॉ० प्रेमसुमन जैन भक्तपरिज्ञा प्रकीर्णक में विभिन्न धार्मिक कार्यों में श्रेष्ठता प्रतिपादित करने वाले व्यक्तियों के नामोल्लेख हैं / मुनिवन्दना के लिए रानी मृगावती, मुनिनिन्दा के फल के लिए. दत्त, सम्यक्त्व के लाभ के लिए हरिकुलप्रभु, श्रेणिक आदि, भक्ति के लिए दर्दुरक मणिकार श्रेष्ठि, जिन नमस्कार फल के लिए मिंढ चोर आदि की कथा के संकेत हैं / अहिंसा आदि पांच व्रतों के पालन और उनका स्खलन करने वालों की कथाएं भी इसमें हैं / कषायविजय के लिए जो सक्षम नहीं हुए उनके दुष्परिणामों की कथा इसमें दी गयी है / पंचेंन्द्रियों के वशीभूत व्यक्तियों को क्या फल मिलता है, इसके लिए पवसियपिया, माहुर वणिक, राजपुत्र, सोदास और सोमालिया राजा के प्रसंग वर्णित हैं / प्राचीन आचार्य विरचित आराधनापताका प्रकीर्णक में आठ प्रकार के मदों का विवेचन करते हुए जातिमद-हरिकेशी, कुलमद-मरीचि, बलमद,-विषभूति, रूपमदसनत्कुमार, तपमद-कूटघटक्षपक, धनमद-दसत्रभद्र, श्रुतमद-स्थूलभद्र एवं लाभमद के लिए भरुकक्ष आर्य के दृष्टान्त दिये गये हैं / इंद्रियविजय, कषायविजय आदि की भी कुछ कथाएँ यहां वर्णित हैं। प्रकीर्णकों मे उल्लिखित ये कथाएं अत्यन्त संक्षिप्त हैं / इससे सपष्ट है कि ये कथाएं पूर्वग्रन्थों मे विस्तार से आ चुकी होंगी और परम्परा में भी उनकी प्रसिद्धि रही होगी / इन कधाओं के मूल स्रोत एवं विकासक्रम को खोजने का कार्य अनुसंधान का नया विषय बन सकता है / व्याख्यासाहित्य, वडाराधना, बृहत्कथाकोश आदि ग्रन्थों का आलोड़न इस दिशा में उपयोगी होगा / इन कथाओं में अंकित सांस्कृतिक महत्त्व के संकेतों का भी अध्ययन किया जा सकता है / हम्बर्ग(जर्मनी) के कुर्टवान कम्टज नामक विद्वान एवं डॉ० ए० एन० उपाध्ये द्वारा किये गये कार्य भी इस दिशा में उपयोगी होंगे। भाषात्मक एवं पाठ संशोधन अध्ययन तो किया ही जाना चाहिए / धर्म-दर्शन के स्वरूप एवं विकास पर भी ये कथाएं कुछ प्रकाश डालेंगी। * विभागाध्यक्ष जैनविद्या एवं प्राकृत विभाग मोहनलाल सुखाड़िया विश्वविद्यालय, उदयपुर (राज.)