________________ समाधिमरणेतर प्रकीर्णकों की विषयवस्तु : 53 उत्कट ऋषि नामक बीसवें अध्याय में यद्यपि किसी ऋषि के नाम का उल्लेख नही है तथापि इस अध्याय में पाँच प्रकार के उत्कट बताये गए हैं-(१) दण्डोत्कट (2) रज्जुत्कट (3) स्तेनोत्कट (4) देशोत्कट और (5) सर्वोत्कट / उक्त पांच प्रकार के उत्कटों की चर्चा के पश्चात यह कहा गया है कि शरीर का विनाश होने पर पुनः शरीर की उत्पत्ति नहीं होती अर्थात् पुनर्जन्म नहीं होता / 28 इक्कीसवाँ अध्याय गाथापतिपुत्र तरुण के उपदेशों से संबंधित है / प्रस्तुत अध्याय में उदाहरण पूर्वक यह समझाया गया है कि अज्ञान के कारण किस प्रकार मृग, पक्षी और हाथी पाश में बाँधे जाते है और मत्स्यों के कंठ वींधे जाते हैं / इसी प्रकार अनेक उदाहरणों से प्रस्तुत अध्याय में अज्ञान के दुष्प्रभावों को दिखाकर ज्ञान मार्ग के अनुसरण की प्रेरणा दी गयी है / 29 __बाईसवाँ अध्याय गर्दभालि ऋषि के उपदेशों से संबंधित है / प्रस्तुत अध्याय में विशेष रूप से पुरुष की प्रधानता और नारी की निन्दा का ही निरूपण हुआ है / नारी निन्दा करते हुए इस अध्याय में कहा गया है कि वे ग्राम और नगर धिक्कार के योग्य हैं जहाँ महिला शासन करती हों / इसीप्रकार वे पुरुष भी धिक्कार के योग्य हैं जो नारी के वश में हों / अध्याय के अन्त में बंधन के कारणों के सम्यक् परिज्ञान की शिक्षा देते हुए धर्म मार्ग का प्रतिपादन किया गया है / 30 रामपुत्त नामक तेईसवें अध्याय में रामपुत्त के उपदेश गद्य रूप में मिलते है / इसमें दो प्रकार के मरणों का उल्लेख है-(१) सुख पूर्वक मरण (समाधि पूर्वक मरण) और (2) दुःख पूर्वक मरण (असमाधि पूर्वक मरण) इस अध्याय में यह भी कहा गया है कि साधक ज्ञान के द्वारा जाने, दर्शन के द्वारा देखे, चारित्र के द्वारा संयम करें और तप के द्वारा अष्टविध कर्मरज का विधुनन करें / 31 उत्तराध्ययनसूत्र के पांचवें अध्याय में मरण के इन दो रूपों की चर्चा के साथ ही अट्ठाईसवें अध्याय में ज्ञान के द्वारा जानने, दर्शन के द्वारा श्रद्धा करने, चारित्र के द्वारा संयम करने तथा तप के द्वारा परिशोधन करने की बात कही गयी .. चौबीसवें हरिगिरि नामक अध्ययन में हरिगिरि ऋषि के उपदेशों का संकलन है / प्रस्तुत अध्याय में मुख्य रूप से कर्म सिद्धान्त की महत्ता और उसके स्वरूप का प्रतिपादन किया गया है / तत्पश्चात कर्म के बंधन के रूप में मोह या अज्ञान की चर्चा करते हुए यह बताया गया है कि व्यक्ति मोहदशा के कारण किस प्रकार कर्म का बंधन करता है / यहाँ यह भी स्पष्ट किया गया है कि व्यक्ति स्वंय ही बंधन में आता है और स्वयं ही मुक्त भी हो सकता है / 32 ___पच्चीसवें अम्बड परिव्राजक अध्याय में अम्बड परिव्राजक के उपदेशों का संकलन है / प्रस्तुत अध्याय में अम्बड परिव्राजक की आचार परम्परा की विस्तृत विवेचना की गयी छब्बीसवें मातंग नामक अध्याय में मातंग ऋषि के उपदेशों का संकलन है / इस