________________ 54 : डॉ० अशोक कुमार सिंह एवं डॉ. सुरेश सिसोदिया अध्याय में मुख्य रूप से यह बताया गया है कि ब्राह्मण न तो धनुष और रथ से युक्त होता है और न ही शस्त्रधारी होता है / सच्चे ब्राह्मण को न तो झूठ बोलना चाहिए और न चोरी करनी चाहिए / 34 वारत्तक मानक सत्ताइसवें अध्याय में वारत्तक ऋषि के उपदेशों का संकलन है / प्रस्तुत अध्याय में आदर्श श्रमण कैसा होना चाहिए, इस तथ्य का चित्रण किया गया है / इसके अनुसार मुनि सांसारिक या गृहस्थों के सम्पर्क से विरत रहे तथा स्नेह बंधन को छोड़कर स्वाध्याय में तल्लीन रहे और चित्त के विकार से दूर रहकर निर्वाण मार्ग में लगा रहे / प्रस्तुत अध्याय में मुनि के जीवन के अकृत्य कार्यों का विस्तारपूर्वक निरूपण हुआ __ अट्ठाईसवाँ अध्याय आर्द्रक ऋषि के उपदेशों का संकलन है। इसमें सांसारिक काम भोगों से दूर रहने का उपदेश दिया गया है, क्योंकि काम-वासनाएँ ही रोग और दुर्गति का कारण हैं / जब तक प्राणी काम रूपी शल्य का नाश नही कर देता तब तक वह संसार भ्रमण की परम्परा से मुक्त भी नहीं हो पाता / 36 वर्द्धमान नामक उन्तीसवें अध्याय में वर्द्धमान ऋषि के उपदेश संकलित हैं। वस्तुतः ये वर्द्धमान कोई अन्य नहीं अपितु स्वयं भगवान महावीर ही हैं क्योंकि जैन परम्परा में महावीर का पारिवारिक नाम वर्द्धमान ही है / प्रस्तुतः अध्याय में कहा गया है कि जो मन और कषायों को जीतकर सम्यक् तप करता है वह शुद्धात्मा अग्नि में दी गई हविष के समान प्रदीप्त होती है / इसप्रकार प्रस्तुत अध्याय पाँच इन्द्रियों और मन के संयम पर बल देता है / 37 तीसवाँ अध्याय वायु नामक ऋषि से संबंधित है / इस अध्याय में मुख्य रूप से कर्म सिद्धान्त का ही प्रतिपादन हुआ है / वायु ऋषि कहते हैं कि जैसा बीज होता है वैसा ही फल होता है / अच्छे कर्मों का फल अच्छा और बुरे कर्मों का फल बुरा होता है / 38 कर्म सिद्धान्त के सामान्य प्रतिपादन के अतिरिक्त इस अध्याय में और कोई विशेष नवीन तथ्य नहीं मिलता है। इकतीसवें अध्याय में अर्हत पार्श्व के विचारों का संकलन है। इस अध्याय में पार्श्व के दार्शनिक एवं आचार संबंधी दोनो ही प्रकार के विचार उपलब्ध होते हैं / दार्शनिक दृष्टि से इसमें लोक का स्वरूप, जीव एवं पुद्गल की गति, कर्म और फल विपाक तथा मोक्ष के स्वरूप आदि की चर्चा है / आचार संबंधी चर्चा में चातुर्याम, कषाय, प्राणातिपात से मिध्या दर्शन शल्य पर्यन्त अठारह पापस्थानों की चर्चा है / 39 पिंग मानक बत्तीसवें अध्याय में पिंग ऋषि के उपदेशों का संकलन है / प्रस्तुत अध्याय में आध्यात्मिक कृषि की चर्चा करते हुए पिंग ऋषि कहते हैं कि सर्व प्राणियों के प्रति दया करने वाला जो भी व्यक्ति इसप्रकार की कृषि करता है, वह चाहे ब्राह्मण हो, क्षत्रिय हो, वैश्य हो या शूद्र, सिद्धि को प्राप्त करता है /