________________ 74 : जौहरीमल पारख 'संग्रहणी' नामक 13 वाँ प्रकीर्णक अलग गिनाया गया है, वह इसी के नाम का भाग हो / महावीर जैन विद्यालय, बम्बई के संस्करण में पूरा नाम 'दीवसागरपण्णत्तिसंगहणीगाहाओ' ही लिखा है। B-9 मरणसमाधि-यह भी अन्त समय साधना का एक आकर ग्रन्थ है और कथा उदाहरणों से भरपूर है / कथाओं के प्रसंग से रोचकता उत्पन्न होती है और मृत्यु शय्या पर पड़े हुए व्यक्ति के लिये सरल वस्तु ही ग्राह्य होती है / ___B-10 सिद्धप्राभृत-यद्यपि नाम दिगम्बर कृति जैसा है परन्तु यह श्वेताम्बर रचना है और इसमें सिद्धों का वर्णन है / वृत्ति सहित इसकी प्राचीन ताड़पत्रीय प्रति जैसलमेर वखंभात के भंडारों में प्राप्य है / मलयगिरि एवं हरिभद्राचार्य के ग्रंथों में इस वृत्ति के उल्लेख भी मिलते हैं / बहुत संभव है कि इस पर एक से अधिक भी प्राचीन वृत्तियाँ हों / C-1 अङ्गचूलिका-ठाणांग, व्यवहार, नंदीसूत्र व पाक्षिकसूत्र में उल्लेखित यह ग्रन्थ अद्यावधि अमुद्रित है यद्यपि इसकी प्रतियाँ कई भंडारों में उपलब्ध हैं / इसमें साधु द्वारा आगम स्वाध्याय विधि-नियम और उनकी विषयवस्तु का वर्णन है / उ० यशोविजयजी आदि ने इसके आधार पर सज्झायों की रचना की है। इसके कर्त्तारूप में यशोभद्र का माम लिया जाता है। C-2&c-3 कवच और जीवविभक्ति-ये दोनों ग्रन्थ जिनचंद्रसूरि की अर्वाचीन रचनायें हैं परन्तु प्राचीन आगम आलापकों के ही संकलन होने से प्रामाणिक है / इनका भी अभी तक मुद्रण-प्रकाशन नहीं हुआ है / C-4 पर्यन्त आराधना-यह ग्रन्थ भी ऊपरB-३ में आराधनापताका का परिचय दिया है उसी तरह का है और वह टिप्पणी यहाँ भी लागू पड़ती है / यद्यपि इन नामों के बीसों ग्रन्थ परस्पर बढ़कर हैं परन्तु केवल दो ही प्रकीर्णकों में शुमार किये जाने हैं और वो कौनसे लिये जाएँ, यह निर्णय सरल नहीं हैं और वह निर्णय एकमत हो, ऐसा शक्य भी नहीं है / यद्यपि सोमसूरि रचित इस नाम का ग्रंथ लगभग हर ग्रन्थ भंडार में बहुतायत से मिलता है तो भी मुनि पुण्यविजयजी के देहान्त के बाद उनके सहायक श्री अमृतभाई भोजक ने जो प्रकीर्णक संग्रह महावीर जैन विद्यालय, बम्बई से प्रकाशित करवाये हैं उनमें इसको शामिल नहीं किया है और बदले में जैसलमेर आदि भंडारों में प्राप्य 263 गाथा की प्राचीन अज्ञात रचना को स्थान दिया है तथा साथ में कई अन्य आराधनायें व कुलक भी छाप दिये हैं / सोमसूरि के ग्रंथ पर वृत्तियाँ भी कई जगह मिलती हैं। अधिक प्रचलित होने के कारण मूल या अनुवाद सहित कई जगहों से यह ग्रन्थ प्रकाशित भी हो चुका है। ___C-5 पिण्डविशुद्धि-जिनवल्लभ रचित यह प्रकीर्णक सांप्रदायिक व्यामोह का शिकार हुआ है। इसमें संकलित गाथाएँ आगम आधारित हैं और चउसरण (कुशलानुबंधि) को छोड़कर सबसे अधिक व्याख्या साहित्य इस प्रकीर्णक पर रचा गया है / ये आचार्य प्रकाण्ड विद्वान थे और इनकी कई प्रौढ उच्च स्तरीय रचनाएँ मिलती हैं। इनके द्वारा रचित प्राचीन कर्म ग्रन्थ (चतुर्थ) षडशीति पर मलयगिरि ने टीका लिखी है इससे भी हम अनुमान