________________ 72 : जौहरीमल पारख . A-8 - महाप्रत्याख्यान-यह ग्रन्थ भी अन्त समय की आराधना के विषय पर है। प्रकीर्णकों का अधिकांश भाग अंतिम आराधना को लेकर क्यों है ? इस प्रश्न के निम्न उत्तर सुझाये जा सकते हैं (1) जैनागमों के अवलोकन मात्र से यह सिद्ध है कि साधु-साध्वियों के लिये संथारा या समाधिमरण उत्सर्ग मार्ग था, अपवाद मार्ग नहीं। __(1) सम्पूर्ण जीवन की साधना मृत्यु के समय सफल हो, अन्तिम समय में शिथिलता नहीं आए, तदर्थ अन्तिम समय में आराधना करने का उपदेश है। (III) यदि व्यक्ति अन्त समय में शुद्ध भाव में या कम से कम शुभभाव में भी रहे तो उसकी दुर्गति नहीं होती, यह सिद्धान्त-वचन है। अतः प्रत्येक व्यक्ति को पंडितमरण का प्रयास करना ही चाहिये / A-9- वीरस्तव-यह प्रकीर्णक सूत्रकृताङ्ग के वीरस्तुति' नामक छठे अध्याय की ओर हमारा ध्यान आकर्षित करता है / ललितविस्तरा की भांति इसकी भी दार्शनिक टीका अपेक्षित है / इस शैली का 22 गाथाओं का एक महावीर स्तवन अभयदेवसूरि विरचित भी मिलता है। ___A-10 - संस्तारक-प्राकृत की संस्कृत छाया करने से किसप्रकार विषय या अर्थ क्लिष्ट बन जाता है उसका यह एक उदाहरण है, क्योंकि 'संथारा' शब्द जनसाधारण को बिल्कुल आसानी से समझ में आ जाता है जबकि 'संस्तारक' मुश्किल से / इस ग्रन्थ में जो दृष्टान्त दिये गये हैं उनका बहुत ऐतिहासिक महत्त्व है / . B-1 - अङ्गविद्या भारतीय वाङ्गमय में अपनी तरह का यह एक ही ग्रन्थ है / इस पर जैन धर्मावलम्बी गर्व कर सकते हैं / इसमें मनुष्य की शारीरिक क्रिया व चेष्टा के आधार पर फलादेश दिये गये हैं / यह मानस व अंगशास्त्र निमित्त की अतिदीर्घकाय रचना है परन्तु इसका और जयपाहुड नामक प्रश्नव्याकरण का अनुवाद करने में कोई सफल नहीं हुआ है / प्राकृतज्ञों की पुरानी पीढी के चले जाने पर भविष्य में तो इसके अनुवाद की संभावना और क्षीणतर हो जावेगी। B-2 - अजीवकल्प-यद्यपि प्रस्तावना में महावीर जैन विद्यालय, बम्बई वालों ने इसका उल्लेख किया है परन्तु इसका मुद्रण नहीं किया है / अन्यत्र कहीं से भी मुद्रण हुआ हो, ऐसा प्रतीत नहीं होता। हालांकि जैसलमेर, पाटण आदि भंडारों में यह सुलभ्य है / साधु समाचारी (एषणा समिति) इसका विषय है और प्रारंभ के पद हैं, 'आहारे उवहम्मिय उवस्सए तहइ पस्सचणाएय' / ____B-3 - आराधनापताका-आराधना नामक अर्थात् मुख्यतः अन्त समय साधना विषयक ग्रन्थ, ग्रन्थ भण्डारों में सैकड़ों की संख्या में मिलते हैं, यह कहना अतिश्योक्ति नहीं होगा / अतएव कौनसा ग्रन्थ प्रकीर्णक गिना जाय-यह निर्णय आसान नहीं है / मुनि