________________ 48 : डॉ० अशोक कुमार सिंह एवं डॉ. सुरेश सिसोदिया धारण करें, जिसप्रकार वे शास्त्र में प्रतिपादित हैं / इसप्रकार की साधना से गर्भवास में निवास करने वाले जीवों के जन्म-मरण, पुनर्भव, दुर्गति और संसार में गमनागमन समाप्त. हो जाते हैं / 25 (4) गणिविद्या प्रकीर्णक इस प्रकीर्णक का उल्लेख नन्दीसूत्र और पाक्षिकसूत्र में प्राप्त होता है। नन्दीचूर्णि में गणिविद्या का परिचय इसप्रकार दिया गया है-गण अर्थात् बाल और वृद्ध मुनियों का गच्छ, वह गण जिसके नियन्त्रण में है वह गणि, विद्या का अर्थ है ज्ञान, ज्योतिष-निमित्त विषय के ज्ञान से दीक्षा, सामायिक, व्रतोपस्थापना, श्रूतसम्बन्धित उद्देश, समुद्देश की अनुज्ञा, गण का आरोपण, दिशा की अनुज्ञा तथा क्षेत्र से निर्गमन और प्रवेश आदि कार्य जिस तिथि, करण, नक्षत्र, मुहूर्त और योग में करने के लिए निर्देश जिस अध्ययन में है उसको गणिविद्या कहते हैं / 3 हरिभद्रसूरिकृत नन्दीसूत्र वृत्ति में इस प्रकीर्णक का परिचय इसप्रकार दिया गया है-गुणों का समूह जिसमें है वह गणि, गणि आचार्य भी कहा जाता है, उसकी विद्या अर्थात ज्ञान गणिविद्या कही जाती है। यहाँ सामान्य होते हुए भी यह विशेष है कि प्रव्रज्यादि कार्यों में तिथि-करण आदि जानने में ज्योतिष-निमित्त के ज्ञान का उपयोग करना चाहिए, अन्यथा दोष लगता है, हानि हो सकती है। प्रस्तुत ग्रन्थ में दिवस, तिथि, नक्षत्र, करण, ग्रह, मुहूर्त, शकुनबल, लग्नबल और निमित्तबल, इन नौ विषयों का निरूपण है / प्रारम्भ में ग्रन्थकार अपने वर्ण्य-विषय का अभिधेय कहता है / तत्पश्चात् इन नौ विषयों का विस्तारपूर्वक निरूपण करता है। प्रथम दिवस द्वार में कहा गया है कि उभयपक्षों के पराक्रमी लग्न वाले दिवसों और निर्बल एवं विषम रात्रियों के सम्बन्ध में बलाबल विधि को जानना चाहिए / 5 द्वितीय तिथिद्वार में चन्द्रमा की एक कला को तिथि माना गया है / ग्रन्थ में कृष्ण एवं शक्ल दोनों पक्षो की 15-15 तिथियों का वर्णन करते हुए कहा गया है कि प्रदिपदा एवं द्वितीया में प्रवृत्ति नहीं करनी चाहिए / तृतीया, पंचमी, सप्तमी, दशमी, एकादशी एवं त्रयोदशी विघ्नरहित एवं कल्याणकारक हैं। इन तिथियों का नामकरण नन्दा, भद्रा, विजया, रिक्ता, (तुच्छा) पूर्णा आदि रूपों में किया गया है / श्रमणों के लिए कहा गया है कि वे नन्दा, जया एवं पूर्णा संज्ञक तिथियों में शैक्ष को दीक्षित करें / नन्दा एवं भद्रा तिथियों में नवीन वस्त्र धारण करें एवं पूर्णा तिथि में अनशन करें। तृतीय नक्षत्र द्वार में कहा गया है कि सन्ध्यागत नक्षत्र में कलह, विलम्बिन नक्षत्र में विवाद, विड्डेर नक्षत्र में शत्रू विजयी होता है / रविगत नक्षत्र में मुक्ति की प्राप्ति नहीं होती है / पुष्य, हस्त, अभिजित, अश्विनी तथा भरणी-इन नक्षत्रों मे पादोपगमन अनशन करना चाहिए / मृगशीर्ष, आर्द्रा, पुष्य, श्रवण, घनिष्ठा, पुणर्वसू, मूल, अश्लेषा, हस्त तथा चित्रा नक्षत्र ज्ञान की वृद्धि कराने वाले हैं / पूणर्वसू, पुष्य, श्रवण, घनिष्ठा-इन चार नक्षत्रों में लोच