________________ 46 : डॉ० अशोक कुमार सिंह एवं डॉ० सुरेश सिसोदिया त्याग और तपस्या से भी महत्त्वपूर्ण गुरुवचन का पालन मानते हुए कहा गया है कि अनेक उपवास करते हुए भी जो गुरु के वचनों का पालन नहीं करता, वह अनन्तसंसारी होता है। आचार्यगुण के पश्चात् शिष्यगुण का उल्लेख हुआ है जिसमें कहा गया है कि नानाप्रकार से परिषहों को सहन करने वाले, लाभ-हानि में सुख-दुःख रहित रहने वाले, अल्प इच्छा में संतुष्ट रहने वाले, ऋद्धि के अभिमान से रहित, दस प्रकार की सेवा-सुश्रूषा में सहज, आचार्य की प्रशंसा करने वाले तथा संघ की सेवा करने वाले एवं ऐसे ही विविध गुणों से सम्पन्न शिष्य की कुशलजन प्रशंसा करते हैं / 1deg ___ आगे कहा गया है कि समस्त अहंकारों को नष्ट करके जो शिष्य शिक्षित होता है, उसके बहुत से शिष्य होते हैं, किन्तु कुशिष्य के कोई भी शिष्य नहीं होते / शिक्षा किसे दी जाए, इस सम्बन्ध में कहा गया है कि किसी शिष्य में सैकड़ों दूसरे गुण भले ही क्यों न हों, किन्तु यदि.उसमें विनयगुण नहीं है तो वैसे पुत्र को भी वाचना न दी जाए / फिर गुण विहीन शिष्य को तो क्या ? अर्थात् उसे तो वाचना दी ही नहीं जा सकती / 11 विनय-निग्रह नामक चतुर्थ परिच्छेद में विनय को मोक्ष का द्वार बतलाया गया है और सदैव विनय का पालन करने की प्रेरणा दी गई है तथा कहा है कि शास्त्रों का थोड़ा जानकार पुरुष भी विनय से कर्मों का क्षय करता है / 12 आगे कहा गया है कि सभी कर्मभूमियों में अनन्तज्ञानी जिनेन्द्र देवों के द्वारा भी सर्वप्रथम विनयगुण को प्रतिपादित किया गया है तथा इसे मोक्षमार्ग में ले जाने वाला शाश्वत गुण कहा है / मनुष्यों के सम्पूर्ण सदाचरण का सारतत्त्व भी विनय में ही प्रतिष्ठित होना बतलाया है / इतना ही नहीं, आगे कहा है कि विनय रहित तो निर्ग्रन्थ साधु भी प्रशंसित नहीं होते / 13 ___ ज्ञानगुण नामक पाँचवें द्वार में ज्ञानगुण का वर्णन करते हुए कहा है कि वे पुरुष धन्य हैं, जो जिनेन्द्र भगवान द्वारा उपदिष्ट अति विस्तृत ज्ञान को समग्रतया नहीं जानते हुए भी चारित्र सम्पन्न हैं / ज्ञात दोषों का परित्याग और गुणों का परिपालन, ये ही धर्म के साधन कहे गये हैं / आगे कहा गया है कि जो ज्ञान है वही क्रिया या आचरण है, जो आचरण है वही प्रवचन अर्थात जिनोपदेश का सार है और जो प्रवचन का सार है, वही परमतत्त्व है।१४ ज्ञान की महत्ता का प्रतिपादन करते हए कहा गया है कि इस लोक में अत्यधिक सुन्दर तथा विलक्षण होने से क्या लाभ ? क्योंकि लोक में तो चन्द्रमा की तरह लोग विद्वान के मुख को ही देखते हैं / ज्ञान ही मुक्ति का साधन है, क्योंकि ज्ञानी व्यक्ति संसार में परिभ्रमण नहीं करता है / साधक के लिए कहा गया है कि जिस एक पद के द्वारा व्यक्ति वीतराग के मार्ग में प्रवृत्ति करता है, मृत्यु समय में भी उसे नहीं छोड़ना चाहिए / 15 चारित्रगुण नामक छठे द्वार में उन पुरुषों को प्रशंसनीय बतलाया गया है, जो गृहस्थरूपी बन्धन से पूर्णतः मुक्त होकर जिनेन्द्र भगवान द्वारा उपदिष्ट मुनि-धर्म के आचरण हेतु प्रवृत्त होते हैं / पुनः दृढ धैर्य वाले मनुष्यों के विषय में कहा है कि वे दुःखो के