________________ समाधिमरण सम्बन्धी प्रकीर्णकों की विषयवस्तु : 31 मान दोष का कथन, मान-त्याग के गुणों का कथन, माया-दोष का निरूपण, लोभ दोष के कथन पूर्वक उसके त्याग का निरूपण, इनसे सम्बन्धित दृष्टान्त, कषायों पर विजय प्राप्त करने के उपदेश, आठवें 'परिषह सहन' अनुशिष्टि प्रतिद्वार में 22 परिषहों के नाम और उनके विजय की प्रेरणा, नवें 'उपसर्ग सहन' अनुशिष्टि प्रतिद्वार में देव, मनुष्य, तिर्यंच की आत्मसंवेदना, उपसर्ग चतुष्क में प्रत्येक के भेद से षोडश उपसर्ग का निरूपण, उदित उपसर्ग के सहन का उपदेश,२३ दसवें प्रमाद' अनुशिष्टि प्रतिद्वार में प्रमाद-त्याग का कथन, प्रमाद के आठ और पाँच भेद, प्रमाद के कारण महाज्ञानी का भी भव भ्रमण, ग्यारहवें 'तपश्चर्या' अनुशिष्टि प्रतिद्वार में तपमाहात्म्य बताते हुए तपश्चर्या का उपदेश, बारहवें 'रागादि प्रतिषेध' में रागादिजनित दोष, रागादि पर विजय के सम्बन्ध में बताते हुए रागद्वेष के त्याग का निरूपण है / 24 तेरहवें निदान त्याग अनुशिष्टि प्रतिद्वार में निदान के 9 भेद, 9 प्रकार के निदानों के करने से होने वाले दोषों का कथन, प्रकारान्तर से निदान के तीन भेद, निदानों से सम्बन्धित दृष्टान्तों का निर्देश, निदान करने से संसार-वृद्धि का निरूपण आत्महितकर प्रार्थना को प्रेरणा, चौदहवें 'कुभावना त्याग' अनुशिाष्टे प्रतिद्वार में 25 प्रकार की कुभावनायें, कुभावना से हानि, कुभावना के त्याग से लाभ का वर्णन है / 25 पन्द्रहवें 'संलेखनाचारपरिहरण' अनुशिष्टि प्रतिद्वार में संलेखना के विषय में 5 अतिचार तथा उनके त्याग का उपदेश, सोलहवें 'शुभभावना' अनुशिष्टि प्रतिद्वार में द्वादश शुभभावनाओं के नाम, स्वरूपादि, सत्रहवें 'पंचविंशमहाव्रत भावना' अनुशिष्टि प्रतिद्वार में 25 महाव्रत भावनाओं के नाम-स्वरूप आदि का विवरण, अनुशिष्ट क्षपक का गुरु के प्रति हृदयंगम वक्तव्य का निरूपण है / 26 तीसवें कवचद्वार' में क्षपक को पेय (पानक) स्वरूप और क्रम से पान का भी प्रत्याख्यान, वेदनाभिभूत क्षपक की चिकित्सा, निर्यामक गुरु स्मारणा, आराधक नर-तिर्यंच के विविध दृष्टान्तों के निर्देश पूर्वक गुरुकृत क्षपक की स्मारणा, क्षपक के प्रति चतुर्गति दुःख के सम्बन्ध में गुरु का विस्तार से उपदेश, ३१वें आराधना फलद्वार' में उत्तरोत्तर, 'मोक्षप्राप्ति' कथन पूर्वक आराधना का विस्तार से फल निरूपण है / 27 अन्त में उपसंहार में आराधना का माहात्म्य बताया गया है / 28 (21) श्रीवीरभद्राचार्य विरचित आराधनापताका इस प्रकीर्णक में 989 गाथायें हैं / इसमें समाधिमरण का सांगोपांग विवरण उपलब्ध है / प्रकीर्णक में मंगल और अभिधेय के पश्चात् मुख्य विषय का प्रतिपादन करने के पूर्व पीठिका दी गई है। इसमें पहले मरण के भेद-प्रभेद का वर्णन है / समाधिमरण के अविचार और सविचार दो भेदों में से सविचार भक्तपरिज्ञा मरण का यहाँ विस्तृत विवेचन है / विषय को (1) परिकर्मविधि द्वार, (2) गणसंक्रमण द्वार, (3) ममत्व उच्छेद द्वार और (4) समाधिलाभ द्वार में वर्गीकृत कर पुनः इन्हें प्रतिद्वारों में विभक्त किया गया है / इन चार द्वारों के क्रमशः ग्यारह, दस, दस और आठ प्रतिद्वार हैं। ___ग्रन्थ के प्रारम्भ में भगवान महावीर की वन्दना करके गौतमादि पूर्वाचार्यों द्वारा अनुभूत और कथित आराधना के स्वरूप का ग्रन्थकार द्वारा कथन करने का संकल्प है। इसके पश्चात पीठिका के रूप में आराधना के चार उपायों का निरूपण, आराधना-विराधना