________________ 34 : डॉ. अशोक कुमार सिंह . उपरोक्त रूप में भक्तपरिज्ञामरण का प्रतिपादन कर वीरभद्राचार्य इंगिनीमरण का वर्णन करते हैं-इंगिनीमरण का प्रतिपादन करते हुए कहा गया है कि भक्तपरिज्ञा में जो उपक्रम वर्णित हैं वे ही उपक्रम यथायोग्य इंगिनीमरण में हैं / इंगिनीमरण में आराधक द्वारा स्वयं ही आकुंचन, प्रसारण, उच्चारादि की क्रियाएं की जाती हैं। इसमें आराधक देव अथवा मनुष्य कृत उपसर्गो से भयभीत या विचलित नहीं होता / किनर, किंपुरुष, अथवा देवकन्यायें भी उसे विचलित नहीं कर पातीं। सभी पुद्गल यदि दुःखरूप में परिणत हो जायें तो भी उसे ध्यान से विचलित नहीं कर सकते / 13 मौन का अभिग्रह धारण करने वाला वह आराधक आचार्य आदि के पहले बोलने पर बोलता है और देव और मनुष्यों द्वारा पूछने पर धर्मकथा कहता है / 14 इसप्रकार आख्यायित विधि की साधना कर कुछ सिद्ध होते हैं और कुछ विमानों में देव हो जाते है / 15 इसके पश्चात् संक्षेप में पादपोगमनमरण१६ का वर्णन करते हुए आराधना-फल१७ का प्रतिपादन कर प्रकीर्णक को समाप्त कर दिया गया है / सन्दर्भ-सूची 1. चंदावेज्झयं पइण्णयं (चन्द्रवेध्यक प्रकीर्णक) : आगम, अहिंसा-समता एवं प्राकृत संस्थान उदयपुर, 1991, भूमिका पृ०४ नन्दीसूत्रः सम्पा० मधुकरमुनि, आगम प्रकाशन समिति, ब्यावर, पृ० 80-81 गणिविज्जा पइण्णयं (गणिविद्या प्रकीर्णक) : आगम, अहिंसा-समता एवं प्राकृत संस्थान, उदयपुर, 1994, भूमिका पृ० 4 जैन आगम साहित्य मनन और मीमांसा : तारक गुरु जैन ग्रन्थालय, उदयपुर 1977, पृ० 388 समवायांगसूत्र : सम्पा० मधुकरमुनि, आगम प्रकाशन समिति, ब्यावर, 1982, समवाय 84 वही, समवाय 14 देविंदत्थओ (देवेन्द्रस्तव प्रकीर्णक): आगम, आहिंसा-समता एवं प्राकृत संस्थान, उदयपुर, 1988, भूमिका पृ० 12 पइण्णयसुत्ताई : सम्पा० मुनि पुण्यविजय, महावीर जैन विद्यालय, बम्बई, भाग 1, 1984, प्रस्तावना पृ०२० वही, पृ० 19 10. वही, पृ० 19 ॐ (1) आराधना कुलक१. आराहणा कुलयं-पइण्णयसुत्ताई, भाग 2, पृ० 244 2. वही, पृ० 244, गाथा 1; 3. वही, गाथा 2 4. वही, गाथा 3-4; 5. वही, गाथा 5 6. वही, गाथा 6; 7. वही, गाथा 7 8. वही, गाथा 8