________________
* प्रबन्धापली.
एक ही दृष्टांत से प्रगट होगा कि जैनियों के नवपद की, जिसको सिद्धचक भी कहते हैं. महिमा पर उज्जैन के श्रीपाल पति की कथा संस्कृत-प्राकृत में है। उसीपा भाषा में पृथक् पृथक् कवियों की नविन नौ रचनाएं नो मेरे तुच्छ संग्रह में हैं और दूसरे भंडारा की खोज करने से और भी मिलना संभव है। इससे यह स्पष्ट है कि भाषा साहित्य पर जैन विद्वानों का पूरा प्रेम था। विक्रम की सोमहवीं शताब्दी में रचे हुए श्रीपाल जी के भिन्न भिन्न चरित्रों के माति और अंत के कुछ काव्य यहां उद्धृत करता है
(१)सं० १५३१ में उपाध्याय ज्ञानसागर कृतप्रारम्भ कर कमल जोड़ेवि कर सिद्ध सय पणमेव ।
श्री श्रीपाल नरेंद्र नो रास बंध पमछ।
... ... ... ... ... ... ... ... ... ... ... मंत-भषिया:भावे नित नमो श्रीगुणदेव सूरिपाय ।
तास.सीसएगस रच्यो मानसागर उवझाय ॥ पनर एकत्रिसे मिगसिरे उजली वीज गुरुवार। गस रच्यो सिद्ध चक नो गावो श्री नवकार ॥ सिद्ध चक महिमा सुणो भविया कर्णधरेवि । मन बंछित फल दायक एजे सुणे नितमेव ॥ एक मना जे नित जपे ते घर मंगल माल । ऋद्धि अनंती भोग जिम भूपति श्रीपाल
(२) सं० १७२६ कवि ज्ञानसागर कृतमारम्म-सकल सुगसुर जेहना पूजा भावे पाय ।
पुरीसादाणी पासजी ते प्रणम् चित लाय॥
.... ... ... ... ... ... ... ... ... ... ... मंत-सत्तर ख्वीसानी मासो वदी भाठम दिन सार।
सिद्धि योग कीयो रास संपूरण पुष्यनक्षत्र गुरुवार ।
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
www.umaragyanbhandar.com