________________
* प्रबन्धावली.
पहला लेख
॥ श्री गणेशायनमः ॥ बोहा-आदि मंक युत शि(सि)दि निधि ब्रह्मनाम सम लेषि। ___ता सम्बत यहि कुण्ड को रचेउ नवीन विशेषि ॥ १॥
नृपति जसा को नाम लष भपै मध्य पिचार ।
राजकुण्ड है नाम यहि महिमा अगम अपार ॥२॥ क्षपै--- अलज भसन मानसनिवासि विक्रम कुल देसा) वाल।
जो न जरत ताका मनत पस अनुमती(ति) धर्म फलि। पाइन तिय जल जान नारि जाते सुहाग लहु । क्षिति अरु जुगल लोक भनि जासु कीरति प्रताप यहु । दुतिय नाम सब शबद को अर्थ विचारि करि लेषिौ। नाम नपति जस मान को मध्यक्षर महँ पेषिौ * ॥२॥
- तस्य क्ष के मध्यक्षर को. उदाहरण कमल अहार मराल उजैन पाताल अजर कुअर
मलीन पाषान अबला जाहाज सदुर धरती।
इसरा लेख
श्री हरि ॐ दोहा - विमल भक्ति रत जानि जेहि, कृपा कराह रघुवीर ।
तेपि धरत पगु धर्म मग, लहत सुजस मतधीर ॥१॥ राजगृही ते कोश दस, भग्निकोण भिराम । बकसंडापुर यसत जह, बाबू सीताराम ॥२॥ धर्मधुरन्धर ध्रुव विभव, राज राज सुखदेन । अष्टपुत्र पौत्रादि युत, भोगत गज सुखेन ॥३॥
-
-
-
* महाराज ताजअलो खाँ बहादुर । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
www.umaragyanbhandar.com