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श्वेताम्बर और दिगम्बर जैन सम्प्रदायों की प्राचीनता
इस बात से प्रायः सभी लोग परिचित हैं कि जैन सम्प्रदाय श्वेताम्बर और दिगम्बर इन दो सम्प्रदायों में विभक्त है । पाश्चात्य भौर भारतीय विद्वानोंने आज तक जितनी खोज की है, उससे इन दोनों सम्प्रदायों की प्राचीनता के सम्बन्ध में कोई संतोषप्रद ऐतिहासिक प्रमाण नहीं मिलता है। भारतीय विद्वानों में डा० भण्डारकर, डा० भाचार्य्य, डा० बरुभा, डा०ला, और प्रोफैसर चक्रवतीं प्रो० विद्याभूषण प्रो० भट्टाचार्य, प्रो० शील इत्यादि बंगीय विद्वान आजकल जैमतत्व इतिहासादि विषयों की विशेष चर्चा करते हैं। ये महानुभाव पुस्तक तथा निबन्धादि लिख कर जैनतत्व और इतिहास की जो अमूल्य सेवा कर रहे हैं उसके लिये जैन समाज उनका चिर ऋणी रहेगा। वर्तमान कालमें पाश्चात्य विद्वानों में भी जैनियों के प्राचीन इतिहास, तत्वज्ञान, इतिहास एवं आचार व्यवहार के बारे में विशेष खर्चा हो रही है जिनमें कन्धप्रतिष्ठ स्वर्गीय डा० वूलर, डा० बर्जेस, डा० हारनेल तथा डा० हार्मन जैकोबी, डा० ग्लासेनप, डा० गोएरीनो, डा० वीन्टनज आदिके नाम विशेष उल्लेखनीय हैं। इनके अतिरिक्त डा० वार्पेन्टियर, डा० टामस, प्रो० श्रुत्रि, मि० वारेन, डा० लोओमैन, डा० हार्टेल, डा० वर्नेट, डा० कुमारस्वामी और प्रसिद्ध ऐतिहासिक स्व० विन्सेन्ट स्मिथ इत्यादि विद्वानोंने जैन धर्म सम्बन्धी भिन्न भिन्न विषयों पर गवेषणापूर्ण पुस्तकें और निबन्ध लिखे हैं जिनसे अधिकांश पाठक भी परिचित होंगे।
इन दोनों सम्प्रदायों की प्राचीनता के विषय में मैंने जो कुछ
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