Book Title: Prabandhavali - Collection of Articles of Late Puranchand Nahar
Author(s): Puranchand Nahar
Publisher: Vijaysinh Nahar

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Page 150
________________ *प्रबन्धावली* * १२३ * १०वं तीर्थंकर श्री शोतल नाथ और तोसरा २४ वें तीर्थंकर श्री महावीर स्वामी का है। ऐसे ही इस नगरी के बड़ा बाजार स्थित काटन स्ट्रीट के जैन मन्दिर से कार्तिक शुका पूर्णिमा को जो प्रतिवर्ष रथ यात्रा निकलती है वह महोत्सव पारसनाथ के ही नाम से प्रसिद्ध है। परन्तु इस रथोत्सव में १५ वें तीर्थंकर भगवान् धर्मनाथ की प्रतिमा पूजी जाती है। भारतवर्ष के उत्तर, पश्विम और गुजरात प्रान्त के प्रसिद्ध नगर और जैन तीर्थों में जहां जहां हमें जाने का मौभाग्य प्राप्त हुआ है वहां प्रायः सर्वत्र ही हमें भगवान पार्श्वनाथ के मन्दिर देखने में आधे हैं। जिस प्रकार हिन्दुओं का शिबलिङ्ग या शिवमूनि भिन्न भिन्न स्थानों में विभिन्न विशेषणों से सम्बोधित होतो है उसी प्रकार श्री पार्श्वनाथ की मूर्ति भी अनेक स्थानों में भिन्न भिन्न नामों से पुकारा जाती है और पूजी जाती है। इस तरह भिन्न भिन्न नामों की पार्श्वनाथ की मूर्ति की संख्या भी सेकड़ों है। उनमें से कुछ प्रसिद्ध मूर्तियोंको नामावलि पाठकों के सामने उपस्थित कर हम निबन्ध समाप्त करेंगे। जैनियों के उपास्य नीर्थंकरों में क्यों केवल पार्श्वनाथ ही सैकड़ों नामों से अलंकृत होकर पूजे जाते हैं इस का रहस्य आज तक प्रकाशित नहीं हुआ। भगवान् पार्श्वनाथ के शिष्य परंपरा में रत्नप्रभ सरि ने राजपूताना स्थित ओशिया नामक नगर में अनेक राजपूतों को जैन धर्म में दीक्षित किया था वे ही आगे चल कर ओसवाल नाम से प्रसिद्ध हुए इसी ओसवाल वंशमें इतिहास प्रसिद्ध जगत् सेठ हुए थे और ओसवाल लोग आज भी वाणिज्य व्यवसाय में लोन होकर भारत में सर्वत्र फैले हुए हैं। जेनियों में आसवाल और श्रीमाल दुसरे नीर्थकरों की अपेक्षा भगवान् पार्श्वनाथ में अधिक श्रद्धा भकि रखते हैं। हमारे विचार से श्वेताम्बर सम्प्रदाय के जैन लोग भगवान पार्श्वनाथ की पूजार्चना जिस प्रकार करते हैं वैसी दिगम्बर सम्प्रदाय में Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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