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* प्रबन्धावली * पर १६ पन्ति के सिवा २० पखड़ियों का एक कमल ऊपर बायें तर्फ खुदा हुआ है और दूसरा टुकड़ा १७ पंक्ति का है और ऊपर और नीचे जहां तहां टूट गया है।
इसका संवत् बिक्रम १४१२ आषाढ वदी, इस्वी १३५५ होता है। उस समय बंग बिहार प्रान्त में बहुत हलचल मची रहती थी, दिल्ली के बादशाहों का पूरा जोर न था। प्रशस्ति में जो सुलतान फिरोज शाह का उल्लेख है सो ठीक है, परन्तु मगध के शासनकर्ता मलिक वय का नाम हमें वहां के किसी इतिहास में देख नहीं पड़ा वा उनके अधिनस्थ साह नास दुर्दिन ( नसीरुद्दीन ) का भी नाम नहीं मिला है। उस प्रदेश में सम्मुद्दीन जिसको हाजी इलियस भी कहते हैं उस वक्त शासन कर्ता थे। बादशाह फिरोज शाह तोघलक का समय ई० १३१५-१३८८ का है।
इस मंदिर के प्रतिष्ठा का मंत्री दलीप बंश के श्रीमान गच्छराज और देवराज है। इस बंश वालोंकी कराई हुई प्रतिष्ठा आदि के कई लेख मिले हैं और मेरा जैन-लेख-संग्रह जो शीघ्र प्रकाशित होने वाला है उसमें दी गई है। इस प्रशस्ति में सहजपाल से इनकी बंशावली के नाम वर्तमान हैं। सहजपाल के पुत्र तिहुरमापाल उनके पुत्र राह उनके पुत्र ठक्कुर मंडन उनकी स्त्री थिर देवी उनके पुत्र १ सहदेव २ कामदेव ३ महाराज ४ बच्छराज ५ देवराज थे। ४ बच्छराज को दो स्त्री, प्रथम रतनी जिनके २ पुत्र पहराज और चोढर और दूसरी बीबी जिनके धन सिंहादि पुत्र लिखे हैं। ५ देवराज के भी दो स्त्री राजी
और पद्मिनी, राजी के तारा नान्मी कन्या थी और उस तारा के धर्मसिंह और गुणगज यह दो पुत्र हुए और पद्मिनी के पीमराज पद्मसिंह और घड़सिंह यह तीन पुत्र और अच्छरी नाम की एक कन्या थी।
आगे खरतर गच्छ की पद्यवली भी लिखी है। बज्रशाखा चंद्रकुल के उद्योतन सूरी से जिनेन्द्र सूरी तक है और बर्द्धमान सूरी के पाट पर Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
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