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*प्राधावली. चौरासी चौहट्ट कहे जाते हैं। यह संख्या भी कल्पित-सी है, कारण चौहट्टों की संख्या में कम-वेशी हो सकती है।
दिगम्बर जैन लोग मथुरा के पास वृन्दावन के गस्तेमें एक स्थान को भी 'चौरासी' कहते हैं, और वहां अन्तिम केवली श्री जम्बुस्वामी का निर्वाण मानते हैं। परन्तु वे लोग स्थानका नाम चौरासी होनेका कुछ कारण नहीं बताते हैं।
इसी प्रकार इस चौरासी अङ्क का व्यवहार प्राचीन कालसे नाना खानमें नाना प्रकारसे देखने में आता है परन्तु इसका कोई गूढ़ तत्व अथवा और कोई विशेष रहस्य मेरी दृष्टि में नहीं आया। आशा है कि पुरातत्त्व-प्रेमी सजन इस विषय को ध्यान में रखकर भविष्य में इस पर और भी प्रकाश डालेंगे।
चौरासी आसन १ अध्वासन १५ उर्द्धसंयुक्तपादासन २८ ग्रन्थिभेदनासन २ अर्ध कुर्मासन १६ उष्ट्रासन २६ चक्रासन ३ अर्ध पद्मासन १७ एकपाद वृक्षासन ३० ज्येष्ठिकासन ४ अर्ध पादासन १८ अंगुष्ठासन ३१ ताडासन ५ अपानासन १६ कार्मुकासन ३२ त्रिस्तम्भासन ६ अर्थ वृक्षासन २० कुक्कुटासन ३३ दक्षिण चतुर्थास ७ अघ शवासन २१ कूर्मासन
पादासन (गोमुखासन ) ३४ दक्षिण पादपवन ६ उपधानासन २२ कोकिलासन मुकासन १० उत्कटासन २३ कंदपीडनासन ३५ दक्षिणपादशिरासन ११ उत्तान कूर्मासन २४ खंजनासन
३६ दाक्षण पाद. १२ उत्थित विवेकासन २५ गर्भासन
त्रिकोणासन १३ उर्द्ध पद्मासन २६ गरुडासन ३७ दक्षिण तर्कासन १४ उर्द्ध धनुशासन २७ गोरखासनमद्रासन ३८ दक्षिणासन
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