________________
* १७६ *
* प्रबन्धावली* पंजाधी, दक्षिणी, मद्रासी सब जाति और धर्मवाले दलके दल सम्मिलित थे। वही ढोल करतालके साथ उस महापुरुषकी प्रशंसा गीत गाये जा रहे थे। कहीं मृदङ्ग मंजीरकी ध्वनिसे उनकी कीर्ति कहानी वर्णित हो रही थी। बड़ी भक्ति और शान्तिके साथ लोग जनाजेको लिये हुए चले जा रहे थे। तरह तरहके भाव दिलमें उठते थे। सयकी आंखोंमें आंसू थे और दिलोंमें आहोंके बादल। उस समय एकत्व भावकी जैसी पराकाष्ठा देखने में आई वैसी कभी नहीं आई। जाति-निर्विशेषसे सब लोग एक ही रंगमें रंगे दिखाई देते थे। यह निश्चय ही उस देशभक्त महात्माका ही प्रभाव था कि उनके स्वर्गवासके पश्चात् भी देशवासियोंके हृदय में इस प्रकारका उच्च भाव जागृत हो रहा था। जलूसके साथ अंगरेज भी सम्मिलित थे परन्तु पुलिसका एक भी मनुष्य न दिखाई पड़ा।
तिलक महारान महाराष्ट्रीय ब्राह्मण थे। उनके वंशमें यह प्रथा चली आती है कि और जातियोंकी बात तो दूर रही, स्वयं उन्हींकी जातिके ब्राह्मण भी घरवालों को छोड़कर, मृतदेह को स्पर्श नहीं कर सकते। परन्तु यहां तो मामला ही कुछ और था, हिन्दू के अतिरिक्त मुसलमान, पारसी, यहूदी आदि सभी लोग जनाजे को रथी को कन्धों पर रखने को लालायित थे। इसे वे महान पुण्य समझते थे और सभी लोग रथी उठाते हुए क्ल रहे थे। रथी में लोकमान्य बैठी हुई अवस्था में रखे गये थे। पुष्पोंसे, वह पवित्र रथी, ऊपर से नीचे तक लदी हुई थी। सायंकाल में समुद्र तटपर उनकी अन्त्येष्टि क्रिया समाप्त हुई। मैं चौपाटी के निकट एक मकान के ऊपर से यह दृश्य देख रहा था। मुझे मालूम हुआ कि हिन्दुओं का जो साधारण श्मशान है वहां २३ हजार मनुष्यों से अधिक के ठहरने की गुञ्जायश नहीं है, लेकिन यहां तो लाखों की संख्या थी। नेताओं को बड़ी घवराहट हुई। वे लोग कार्पोरेशन के मेयर के पास गये और समुद्र
तटपर शव दाह की आज्ञा मांगी। उनके असमर्थता प्रगट करनेपर सब Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
www.umaragyanbhandar.com