Book Title: Prabandhavali - Collection of Articles of Late Puranchand Nahar
Author(s): Puranchand Nahar
Publisher: Vijaysinh Nahar

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Page 184
________________ श्री राजगृह प्रशस्ति जैन तीर्थ गाइड के तबारिख सुवे बिहार में उसके ग्रंथ कर्ता लिखते हैं कि मथियान महल्ला के मंदिर में एक शिला लेख जो अलग रखा हुआ है.........संवत् तिथि वगैरह की जगह टूटी हुई पंक्ति (१६ ) हर्फ उमदा मगर घीस जानेकी वजह से कम पढ़ने में आता है। आखिर की पंक्ति में जहां गच्छ का नाम है वहां किसी ने तोड़ दिया है, बज्र शाखा वगैरह नाम बेशक मौजूद है। यह पढ़कर मुझे देखने की बहुत अभिलाषा हुई। पता लगाने पर १७ पंक्ति का एक लेख दिवार पर लगा हुआ पाया। किसी २ जगह टूट गया है, संवत् वगैरह साफ है और दूसरा टुकड़ा मालूम हुआ। पहिले टुकड़े के लिये बहुत परिश्रम करने पर पता लगा और अब वहां के रईस बाबू धन्नू लालजी सुचन्ती के यहां रखा गया है। यह राजगिरि के श्री पार्श्वनाथ स्वामी के मन्दिर का प्रशस्ति लेख है। दोनों टुकड़े बिहार में जोकि राजगिरि से उत्तर १२ मील पर है किसी कारण से यहां होंगे और बहुत वर्षों से यहां पर है। मुझे बहुत खोज करने पर भी यहां उठाकर लाने का विशेष कारण का पता न लगा, इतना ही शात हुवा है कि वहां के मथियान श्रावक लोग लाये थे। इस प्रशस्ति के दोनों पाषाण श्याम रंग प्रायः समान माप के हैं, दोनों १० च चौड़े और पहला टुकड़ा २ फूट १० इंच और दूसरा २ फट ८ इंच लंबा है। अक्षर अनुमान आधच के है। पहले टुकड़े Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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